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________________ १७२ जयथवलासहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ 1 O ० के० १ असंखेज्जा | वडि० केत्ति ० १ अता । श्रवत्त० केसि० ? संखेज्जा | एवं तिरिक्खा | वरि अवत्त० णत्थि । सव्वणिरय०- सव्वपंचि०तिरिक्ख- मणूस अपज ०देवा भवणादि जब वगेवजा त्ति मादा असखर्जी असे अप्प अवि सविधिसागर महाराज ०१ असंखेजा । भुज० अवत्त० केत्ति० १ संखेजा । मणुसपज० मणुसिणी०० सम्पदा संखेजा । अणुद्दिसादि अवगड्दा ति अप्प० - अवद्वि० केसि० । असंखेजा । भुज० केत्ति० १ संखेजा | एवं जाव० । केति O ६ ३७६. खेनाणु ० दुविहो णि - ओघेरा आदेसे० । श्रघेण श्रवद्वि० केवडि० खेते ? सच्चलोगे । सेसपदा० लोग० असंखे० भागे । एवं तिरिक्खा० | सेसगदीसु सवपदा० लोग असंखे० भागे । एवं जाव० । Q ३७७. फोसभाणु० दुविहो शि० -- श्रघेण आदेसे० । श्रघेण भुज० श्रसंखे० भागो अट्ट- बारहचोदस० देसूणा । अप्प० लोग असंखे० भागो चोदस लोग० ० भुजगार और अल्पतरप्रवेशक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं । अवस्थित प्रवेशक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । अवक्तव्य प्रवेशक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। इसी प्रकार तिर्यखोमें जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें अवक्तव्य प्रवेशक जीव नहीं हैं। सब नारकी, सब पच्चेन्द्रिय तिर्यञ्ज, मनुष्य अपर्याप्त सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर aashat सब पदोंके प्रवेशक जीव असंख्यात हैं। मनुष्यों में अल्पतर और अवस्थित प्रवेशक जीव कितने हैं ? श्रसंख्यान हैं। भुजगर और अवक्तव्य प्रवेशक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। मनुष्य पर्याप्त, मनुष्यनी और सर्वार्थसिद्धि देवों में सब पदोंके प्रवेशक जीव संख्यात हैं। अनुदिशसे लेकर अपराजित तके देत्रों में अल्पतर और अवस्थितप्रवेशक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। भुजगारप्रवेशक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। इसी प्रकार अनाहारक मार्गमा तक जानना चाहिए । ३६. क्षेत्रानुगमको अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । श्रोधसं अवस्थित प्रवेशक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सर्व लोकप्रमाण क्षेत्र हैं। शेष पदोंके प्रवेशक जीवोंका लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र हैं । इसीप्रकार सामान्य तिर्यञ्चोंमें जानना चाहिए। शेष गतियों में सब पदोंके प्रवेशक जीवोंका लोके श्रसंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र | इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। विशेषार्थ से अवस्थित प्रवेशकों में २६ प्रकृतियों के प्रवेशकोंकी मुख्यता है और इनका क्षेत्र सर्व लोकप्रमाण पहले घतला आये हैं, इसलिए यहाँ पर अवस्थितप्रवेशकों का क्षेत्र सर्व लोकप्रमाण कहा है। शेष पत्रके प्रवेशकोका क्षेत्र लोकके श्रसंख्यातवें भागप्रम है यह स्पष्ट ही है। यह प्ररूप । सामान्य सिर्याम बन जाती है, इसलिए उनमें मोघके समान जानेकी सूचना की है। शेष मार्गशाओंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमारा होने से उनमें सब पदोंके प्रवेशकों का लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र कहा है । ३७७. स्पर्शनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । श्रघसे भुजगारप्रवेशक जीवाने लोके असंख्यातवें भागप्रमाण तथा मनाली के चौदह भागा में से कुछ कम आठ और कुछ कम बारह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अल्पतरप्रवेशक T
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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