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१४२ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
। दगा । ३२०, मणुसतिए २८ २७ २६ २५ २४ पंचिदियतिरिवखभंगो। २१ जह. एयस०, उक्क० तिणि पलिदो० पुनकोडितिभागेण सादिरेयाणि । सेसमोघं । णवरि मणुसिणी० २१ जाह० एयस०, उक्क० पुन्चकोडी देसूणा ।
३२१. देवेसु २८ जह० एयस०, उक्क० तेत्तीसं सागरोवमाणि । २७ २५ २२ श्रोघं । २६ जह• एयस०, उक एकत्तीसं सागरो० । २४ २१ जह० अंतोमु०, उक्क. कोटि पृथक्त्व अधिक तीन पल्य ही है, अतः इनमें २८ और २६ प्रकृतियों के प्रवेशकका उत्कृष्ट काल पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्य प्राप्त होनेसे वह उक्त प्रमाण कहा है । तथा योनिनी सिर्यश्चोंमें न तो सम्यक्त्व प्रकृतिकी क्षपणा सम्भव है और न क्षायिक सम्यग्दष्टि जीव ही मरकर उत्पन्न होते हैं, अतः इनमें २२ और २१ प्रकृतियों के प्रवेशकका काल दूसरी पृथिवीके समान घटित होनेसे इसका भंग दूसरी पृथिवीं के समान जाननेकी सूचना की है। यह सम्भव है कि सम्यक्त्वकी उद्वेलना करनेवाला कोई जीव जब उसकी उद्वेलनामें एक समय बाकी रहे तब वह पश्चेन्द्रिय तिर्यच अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें उत्पन्न हो । यह भी सम्भव है कि जब सम्यग्मिथ्यात्वकी उवेलनामें एक समय शेष रहे तब वह उक्त जीवों में उत्पन्न हो और यह भी सम्भव है कि जब उक्त जीवोंकी पर्यायमें एक समाशिक : रधिधियायशिक्यावीरउल्लाहोज जावे। ऐसा करनेसे उक्त जीवों में २८, २७ और २६ प्रकृतियों के प्रवेशकका जघन्य काल एक समय बन जानेसे वह उक्तप्रमाण कहा है। तथा एक जीवकी अपेक्षा उक्त जीवोंकी उत्कृष्ठ स्थिति अन्तर्मुहूर्त है और इतने काल तक इनमें उक्त पद बने रहें इसमें कोई आधा नहीं पाती, इसलिए इनमें उक्त पदोंका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। शेष कथन स्पष्ट है, क्योंकि उसका खुलासा ओघप्ररूपणाके समय मूलमें ही कर दिया है, इसलिए वहाँ देखकर यहाँ उसकी संगति , बिठा लेनी चाहिए।
३२०. मनुष्यन्त्रिक में २८, २७, २६, २५ और २४ प्रकृतियोंके प्रवेशकका पन्चेन्द्रियतिर्यश्चोंके समान भंग है । २१ प्रकृतियों के प्रवेशकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पूर्वकोटिका निभाग अधिक तीन पल्य है। शेष भंग ओघके समान है। किन्तु इतनी विशेषता है कि मनुष्यनियोंमें २१ प्रकृत्तियों के प्रवेशकका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल कुछ कम एक पूर्वकोटिप्रमाण है।
विशेषार्थ-जिस पूर्वकोटिकी श्रायुवाले मनुष्यने विभाग शेष रहने पर आयुबन्धक याद क्षायिक सम्यक्त्व उत्पन्न किया है और जो मरकर तीन पल्यकी आयुवाले मनुष्यों में उत्पन्न हुभा है उसके २१ प्रकृतियोंके प्रवेशकका उत्कृष्ट काल प्राप्त होनेसे यह पूर्यकोटिका त्रिभाग अधिक तीन पल्य कहा है। तथा जो मनुष्य उपशमश्रेणी से उतरते समय २१ प्रकृतियों का प्रवेशक होकर और दूसरे समयमै मरकर देवोंमें उत्पन्न होता है उस मनुष्यके २५ प्रकृतियोंके प्रवेशकका जघन्य काल एक समय मन जानेसे वह उक्त प्रमाण कहा है। यह तो हम पहले ही बतला आये है कि क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव मरकर मनुष्यनियों में नहीं उत्पन्न होता। हाँ मनुष्यनी क्षायिक सम्यक्त्वको उत्पन्न कर सकती है, अतः मनुष्यत्रिकमेंसे शेष दोमै २१ प्रकृतियों के प्रवेशकका पूर्वोक्त काल कहा है और मनुष्यनीमें कुछ कम पूर्वकोटि कहा है । शेष कथन सुगम है।
६३२१. देवों में २८ प्रकृतियोंके प्रवेशकका जघन्य काल एक समय है और सत्कृष्ट काल तेतीस सागर है। २७, २५ और २२ प्रकृतियोंके प्रवेशकका काल पोषके समान है। २६