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गा० ६२ ]
उत्तरपडिउदीरणाए ठाणा एयजीवेण कालो
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$ ३१९. तिरिक्खेसु २८ जह० एयस०, उक्क० तिष्णि पलिदो० सादिरेयाणि पलिदो० श्रसंखे० भागेण । २७ २५ २२ ओघं । २६ जह० एयस०, उक अरणंतकालमसंखेजा पोग्गलपरियट्टा । २४ जह० तोमु०, उक्क० तिष्णि पलिदो ० देणानि । २१ जह० अंतोमु मार्ग तिष्णिापलो एवं पंचिदियतिरिक्खतिए | णवरि २८ २६ जह० एयस०, उक्क० तिरिण पलिदो ० पुव्व कोडियुधत्ते महियाणि । जोणिणि० २२ २१ विदियविभंगो। पंचि०तिरि०अपज ० - मणुस अपज्ज० २८ २७ २६ जह० एयसमत्र, उक्क० अंतोमु० ।
नरकों में उसे अलग से जान लेना चाहिए। जिसका निर्देश मूल में किया ही है । बात यह है कि द्वितीयादि नरकों में सम्यक्त्वकी क्षपणा सम्भव नहीं हैं, इसलिए वहाँ बाईस प्रकृतियों के प्रवेशकका जघन्य र उत्कृष्ट काल एक समय ही बनता है। तथा द्वितीयादि नरकों में क्षायिकसम्यष्टिकी उत्पत्ति सम्भव नहीं है, इसलिए वहाँ इक्कीस प्रकृतियोंके प्रवेशकका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त ही बनता है।
३३१६ तिर्यों में २८ प्रकृतियोंके प्रवेशकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यका असंख्यातवाँ भाग अधिक तीन पल्य है । २७, २५ और २२ प्रकृतियों के प्रवेशकका काल के समान है । २६ प्रकृतियों के प्रवेशकका जयन्य काल एक समय हैं और उत्कृष्ट काल अनन्त काल है जो असंख्यात पुलपरिवर्तनप्रमाण है । २४ प्रकृतियोंके प्रवेशकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल कुछ कम तीन पल्य है । २१ प्रकृतियों के प्रवेशकका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पूरे तीन पल्य है। इसी नकार पक्षेन्द्रिय तिर्यवत्रिक में जानना चाहिए। किन्तु इतना विशेषता है कि इनमें २८ और २६ प्रकृतियों के प्रवेशकका जघन्य काल एक समय है और एत्कृष्ट काल पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्य है । योनिनी तिर्यञ्चों में २२ और २१ प्रकृतियोंके प्रवेशकका काल दूसरी पृथिवीके समान है। पलेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकों में २८, २७ और २६ प्रकृतियोंक प्रवेशकका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है।
विशेषार्थतिर्यञ्चमं उपशमसम्यक्त्वपूर्वक सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी ससा उत्पन्न कराकर तथा तिर्यञ्च पर्याय में रखते हुए उक्त प्रकृत्तियों की उद्वेलनाद्वारा सत्ता नाश होने के पूर्व ही तीन पल्की युवाले तिर्यों में उत्पन्न करा कर तथा अतिशीघ्र वेदकसम्यक्त्वको उत्पन्न Free उसके साथ जीवन भर रखनेसे २८ प्रकृतियोंके प्रवेशकका उत्कृष्ट काल पल्यका श्रसंख्यातवां भाग अधिक तीन पल्य बन जानेसे उक्त प्रमाण कहा है। तिर्यञ्च पर्यायमें रहनेका उत्कृष्ट काल अनन्त काल हैं और इतने काल तक वह जीव २६ प्रकृतियों का प्रवेशक बना रहे यह सम्भव है, इसलिए इनमें २६ प्रकृतियोंके प्रवेशकका उत्कृष्ट काल अनन्त काल कहा है। अनन्तानुबन्धकी विसंयोजना कर वेदकसम्यक्त्वके साथ तिर्यञ्च पर्याय में निरन्तर रहनेका उत्कृष्ट काल कुछ कम तीन पल्य ही बनता है, इसलिए इनमें २४ प्रकृतियों के प्रवेशकका उत्कृष्ट फाल कुछ कम तीन पल्य कहा है। जो क्षायिक सम्यग्दृष्टि मनुष्य मरकर तिर्यच्चों में उत्पन्न होते हैं वे उत्तम भोगभूमि में ही उत्पन्न होते हैं और उत्तम भोगभूमि में एक जीव की उत्कृष्ट आयु तीन पल्य है, इसलिए यहाँ २१ प्रकृतियों के प्रवेश कका उत्कृष्ट काल तीन पल्य कहा है । सामान्य तिर्यों में यह जो काल घटित करके बतलाया है वह पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्वत्रिक में कुछ विशेषताको लिए हुए ही प्राप्त होता है । वह यह है कि पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्वत्रिक की काय स्थिति पूर्व