SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ड मार्गदर्शक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज उत्तरपडिउदीरणाए ठाणा एयजीवेण कालो गा० ६२ ] -१३६ समपूणावलियमेतद्विदीओ परिसेसिय से काले मिच्छत्त सम्मामिच्छसाणमंतर चरिमफालि पादिय सम्मामिच्छत्तस्स व समरायणावलियमेतद्विदीओ डुविय पुणो कमेण दो पि समयूणावलियमेत्तगोबुच्छे गालेमाणो पुन्त्रमेव सम्मत्त गोबुच्छाओ णिल्लेत्रिय एगसमयं सत्तावीसपवेसगो जादो । तदणंतरसमए सम्मामिच्छत्तगोवुच्छं पि पिल्लेविथ बीसवेसगो होदि । एवमेसो एयसमयमेत्तो सत्तावीसपवेसगस्स जहण्णकालो लडो होइ । * उकस्सेण पलिदोषमस्स प्रसंखेज्जदिभागो । ३१४. कुदो ? सम्मत्तमुच्वेल्लिय सत्तावीसपवेसस्सादि कारण पुणो जाब सम्मामिच्छत्तमुव्वेल्लेदि ताव एदस्स कालस्स पलिदोवमा संखेजभागप्रमाणस्स पयदुकस्सकालतेण विवक्खियत्तादो । * अट्ठावीसं पयडीएं पवेसगो के चिरं कालादो होदि ? ३१५. सुगमं । * जहणणे तोमुत्तं । १३१६. तं जहा -- मिच्छाही उवसमसम्मत्तं घेत्तूण वेदगभावं पडिवञ्जिय अट्टासीससस्सादि काढूण पुणे सम्बलहुमताणुबंधिचकं विसंजोय चउचीसपवेसगो जादो, लद्धो पयदजहण्णकालो । उद्वेलना फालिका घातकर उस समय सम्यक्त्वकी एक समय कम आवलिमात्र स्थितियों को शेष रास्खकर तदनन्दर समयमें मिथ्यात्व और सम्यग्मिध्यात्यके अन्तर की अन्तिम फालिका पतन कर सम्यग्मिथ्यात्व की भी एक समय कम आवलिमात्र स्थितियोंको स्थापितकर पुनः क्रमसे दोनों की ही एक समय कम श्रावलिमात्र गोपुच्छाओं को गलाता हुआ पहले ही सम्यक्त्वकी को गलाकर एक समय तक सत्ताईस प्रकृतियों का प्रवेशक हो गया। तथा तदनन्तर सम्यग्मध्यात्वकी गोपुच्छाको भी गलाकर छब्बीस प्रकृतियोंका प्रवेशक हुआ। इस प्रकार यह सत्ताईस प्रकृतियोंके प्रवेशकका जघन्य काल एक समय प्राप्त होता है । गो * उत्कृष्ट काल पल्पके असंख्यातवें भागप्रमाण है । $ ३१४. क्योंकि सम्यक्त्वकी उद्वेलना कर सत्ताईस प्रकृतियोंके प्रदेशका प्रारम्भ कर पुनः जब तक सम्यग्मिध्यात्यकी उद्वेलना करता है तब तकका यह पल्य के असंख्यातवें भागप्रमाण काल प्रकृत उत्कृष्ट कालरूपसे विवक्षित है । * अट्ठाईस प्रकृतियोंके प्रवेशकका कितना काल है ? ६३१५. यह सूत्र सुगम है । * जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है । ६ ३१६. यथा— कोई मिथ्यादृष्टि जीव उपशमसम्यक्त्वको ग्रहणकर पुनः वेदकभावको प्राप्त हो अट्ठाईस प्रकृतियोंके प्रवेशका प्रारम्भ कर पुनः अति शीघ्र अनन्तानुबन्धचतुष्ककी विसंयोजना कर चौबीस प्रकृतियोंका प्रवेशक हो गया । प्रकृत जघन्य काल प्राप्त हुआ ।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy