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________________ [ वेदगो ७ * तिरिए भंगा | ३ ३०९. कुदो ? प्रणादिवत्र पञ्जवसिदादी तिन्हं भंगारणमेत्य णिम्बाहमुलंमादो। * तत्थ जो सो सादिनो सपज्जवसिदो तस्स जण एयसमओ । मार्गदर्शक २१भ्राफुद्दीन मियउपसमसम्मा द्विणा मिस सम्मामिच्छत्तवेदगसम्मत्तामण दरगुणे पडिवणे साससम्मादट्टिणा या मिच्छते पडिवणे एगसमयं तदुवलंभसंभवादी । * उक्कस्से जवढपोग्गल परियठ्ठे । $ ३११. कुदो ? श्रद्धषोग्गल परियद्वादिसमए पढमसम्मत्तमुप्पाइय सव्वजहस्तोमुहुत्तकालमच्द्रिय मिच्छत्तं गंतूण सव्वलहुँ सम्मत-सम्मामिच्छत्ताणि उब्वेलिय छब्बीस पवेसगभावेणद्धपोग्गलपरियङ्कं परिभमिय तोते सेसे संमारे सम्मत्तं पडवण्णस्स देणद्वपोग्गल परियट्टमे त्तपयदुक्क स्सकालोवलंभादो । * सत्तवीसाए पपडीणं पवेसगो के चिरं कालादो होदि ? $ ३१२. सुगमं । * जहरणेण एयसमओ । ६ ३१३. तं जहा सम्मत्तमुब्वेलमारणमिच्छाइट्ठी सम्माहिमुह होण अंतरं करेमाणो अंतरदुचरिमफालीए सह सम्मत्तचरिमुवेलणफालि घत्तिय तक्काले सम्मतस्स १३८ जयधवलास हिदे कसाय पाहुडे * इस कालके तीन भंग हैं । ३०. क्योंकि अनादि-अनन्त आदि तीन भंग यहाँ पर निर्वाधरूपसे उपलब्ध होते हैं । * उनमें जो सादि-सान्त भंग है उसका जघन्य काल एक समय है । ३१०, क्योंकि अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाले उपशमसम्यग्दृष्टिके मिध्यात्व, सम्यग्मि ध्यात्व और वेदकसम्यक्त्व इनमें से किसी एक गुणस्थानको प्राप्त होने पर अथवा सासादनसम्यग्दृष्टि के मिथ्यात्वको प्राप्त होने पर एक समय तक उक्त कालकी उपलब्धि होती है। * उत्कृष्ट काल उपार्थ पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है । ६ ३११. क्योंकि अर्ध पुद्गल परिवर्तन नामक कालके प्रथम समय में प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न कर और सबसे जधन्य अन्तर्मुहूर्त कालतक रहकर, मिध्यात्व में जाकर अति लघुकालके भीतर सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना कर फिर छब्बीस प्रकृतियों के प्रवेशकभावसे कुछ कम अर्धपुल परिवर्तन नामक कालतक परिभ्रमण कर संसार में अन्तर्मुहूर्त काल शेष रहनेपर सम्यक्त्वको प्राप्त हुए उसके कुछ कम अर्धपुलपरिवर्तन प्रमाण उत्कृष्ट काल उपलब्ध होता है । * सत्ताईस प्रकृतियोंके प्रवेशकका कितना काल है ? ३१२. यह सूत्र सुगम है । * जघन्य काल एक समय है । ६ ३१३. यथा – सम्यक्त्वकी उद्वेलना करनेवाला कोई मिध्यादृष्टि जीव सम्यक्त्वके अभिमुख होकर अन्तर करता हुआ अन्वरकी द्विचरम फालिके साथ सम्यक्त्वकी चरम
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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