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________________ गा० ६२] · उत्तरपग्लिदीरणाय ठाणाणं एयजीवेण कालो ३०५. सुमर्शिक :- आचार्य श्री सुविधिसागर जी महाराज जहणणेण अंतोमुहुरतं । ४३०६. तं कथं ? अट्ठावीससंतकम्मियवेदयसम्माइट्ठी अणंताणुबंधिचउक्क - विसंजोय चउवीसपवेसगो होदूण तदो सबजहणतोमुहुत्तेण मिच्छत्तं गदो तस्स विदियसमए चउवीसपवेसट्टाणं फिट्टिदहावीसपवेसट्ठाण जादं,लद्धो पयद जहण्णकालो। उकस्सेण घेछावहिसागरोचमाणि देसूणाणि । ६३०७. तं जहाएगो मिच्छाइट्ठी उसमसम्मत्तं घेत्तृण तत्कालभतरे चेत्र चउवीससंतकम्मित्रो जादो वेदगसम्म पडिवण्णविदियसमयप्पॉडि चउवीसपवेसगी होदण बेद्धावहिसागरोवमाणि परिभमिय तदवसाणे देसणमोहक्खवणाए अद्विदो मिच्छत्तं खत्रिय तेवीसपवेसगो जादो । एवं समयाहियसम्मामिच्छन-सम्मत्तक्खवण. कालेगुणवेछाच द्विसागरोचममेत्तो पयदुकस्सकालो होदि । बेछावट्ठीणमवसाणे मिच्छन णेदूण पयदकालो किण्ण परूविदो ? ण मिच्छत्तं गच्छमाणस्स सव्वजहण्णंतोमुहुत्तस्स वि सम्मामिच्छत्त-सम्मत्तक्खयणकालादो बहुत्तेण तहाकादुमसत्तीदो । छुच्चासाए पयडोणं पवेसगो केवषिरं कालादो होदि ? ६३०८, सुगम । ६३०५. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है । १. ३०६. वह कैसे ? क्योंकि अट्ठाईस प्रकृतियोंकी सत्तावाला जो वेदकसम्यग्दृष्टि जीव अनन्तानुबन्धी चतुष्ककी विसंयोजनाकर चौधीस प्रकृतियांका प्रवेशक हो अनन्तर समसे जघन्य अन्तर्मुहूते कालके द्वारा मिथ्यात्वमें गया उसके दूसरे समयमें चौबीस प्रकृतियों का प्रवेशस्थान नष्ट होकर अट्ठाईस प्रकृतियों का प्रवेशस्थान उत्पन्न हो गया। इस प्रकार प्रकृत जघन्य काल उपलब्ध हुआ। * उत्कृष्ट काल कुछ कम दो छयासठ सागरोपम है। ६३०७. यथा--एक मिथ्यादृष्टि जीव उपशमसम्यक्त्वको ग्रहण कर उसके कालके भीतर ही चौबीस कर्मोकी सत्तावाला हो गया। पुनः वेदकसम्यक्त्वको प्राप्त करनेके द्वितीय समयसे लेकर चौबीस प्रकृतियोंका प्रवेशक हो कुछ कम दो कथासठ सागर काल तक परिभ्रमण कर उसके मन्तमें दर्शनमोहकी क्षपणाके लिए उद्यात हुआ और मिथ्यात्वका सय कर तेईस प्रकृतियोंका प्रवेशक हो गया। इस प्रकार एक समय अधिक सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्यके क्षपणा कालसे कम दो छयासठ सागर कालप्रमाण प्रकृत उत्कृष्ठ काल होता है। शंका-दो छयासठ सागर कालके अन्त में मिथ्यात्वमें ले जाकर प्रकृत कालका कथन क्यों नहीं किया ? समाधान नहीं, क्योंकि मिथ्यात्यमें जानेवाले जीवका सबसे जघन्य अन्न मुहूर्त काल भी सम्यग्मिथ्यात्व और सम्यक्त्वके क्षपणाकालसे बहुत होनेके कारण वैसा करने में प्रशक्ति है। . * छब्बीस प्रकृतियोंके प्रवेशकका कितना काल है? ३०८. यह सूत्र सुगम है।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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