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________________ १०४ जयधचला सहिदे कसायपाहुडे [ वेदगो ७ सव्वणिरय ० - पंचिंदियति रिक्खा प० - मसापच ० सव्वदेवा त्ति भुजगारभंगो । तिरि० पंचि०तिरिक्खतिए भुजगारमंगो । वरि संखेजगुणवडी कस्य ? श्रएणद० मिच्छाइडि० । एवं जाब ० | Q1 उक्क० १२३३. काला० दुविहो खि -ओषेण श्रादेसे० । श्रघेण संखे० भागवडी जह० एस० । उक्क० चत्तारि समया । संखे० भागहाणी जह० एयम, तिरिण समया । अचडि० जह० एयस०, उक्क० एयस०, उक्क० वे समया । संखे० गुणहाणि अवत० मसतिए | वारे संख० गुणवडि० जहरपु० एयस० अपज्ज० - मरणुस अपज्ज० सव्वदेव त्ति भुजगारभंगो । भुजगारभंगो | वरि संखे० गुणवडि० जह० एयसम Q तो० | संखे० गुणवडी जह० जहरणुक० एयसमश्र । एवं सन्नोरइय० – पंचितिरि०तिरिक्ख पंचि०तिरिक्खतिए । एवं जाव० । । त्रिक में जानना चाहिए। सब नारकी, पब्वेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त, मनुष्य अपर्याप्त और सब देवोंमें भुजगार के समान भंग है। सामान्य तिर्यञ्च और पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिक में सुजगार के मग है अव सुनिशित गुणवृद्धि किसके होती है ? अन्यतर मिध्यादृष्टि होती है। इसी प्रकार अनाहारक मार्गातक जानना चाहिए । ३२३३. कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है – ओघ और आदेश | ओघसे संख्यादभागवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल चार समय है। संख्यात भागहानिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तीन समय है । अवस्थित उदीरणा का जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। संख्यातगुणवृद्धिका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । संख्यातगुणहानि और अवक्तव्य उदीरणाका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । इसीप्रकार मनुष्यत्रिक में जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें संख्यातगुणवृद्धिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । सब नारकी, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त मनुष्य अपर्याप्त और सब देवोंमें भुजगार के समान भंग है । सामान्य तिर्यक्च और पवेद्रिय तिर्यचत्रिक में भुजगारके समान भंग है। किन्तु इतनी विशेषता है कि संख्यात्तगुणवृद्धिका जयन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। विशेपार्थ- पहले भुजगारानुगममें भुजगार उदीरणाका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल चार समय, श्रयतर उदीरणाका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल तीन समय तथा अवस्थितपदका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त घटित करके बतला आये हैं। वहीं यहाँपर क्रमसे संख्यात्त भागवृद्धि, संख्यात भागहानि और अवस्थित उदीरणा का जघन्य और उत्कृष्ट काल जान लेना चाहिए। जो उपशामक उतरते समय श्रन्यतम संज्वलन की उदीरणा करता हुआ भर कर देव होने पर आठकी उदीरणा करने लगता है उसके संख्यातगुणवृद्धिका जघन्य काल एक समय प्राप्त होता है और जो उपशामक उतरते समय अन्यतम संज्वलनकी उदीरणा करता हुआ अन्यतम वेदके साथ दोकी उदीरणा करता है और तदनन्तर समय में मरकर देव होनेपर श्राठकी उदीरणा करने लगता है उसके संख्यात गुणवृद्धिका उत्कृष्ट काल दो समय प्राप्त होता है। यही कारण है कि यहाँ पर संख्यात गुणवृद्धिका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल दो समय कहा है। जो मिध्यादृष्टि जीव नौ की
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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