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________________ - - -- ___ गा०६२] उत्तरपयडिउदीरणाए बड्डिपरूवणा अणुहिसादि सचट्ठा ति उक्क० चड्डी हाणी अबढाणं च तिष्णि वि सरिमाणि । एवं जावः। २३०. जह० पयदं । दुविहो णि०-प्रोघे० प्रादेसे० । ओघेरण जह० वड्डी हाणी अवद्वाणं च तिगिण वि सरिसाणि । एवं चदुसु गदीसु । एवं जावः । एवं पदणिक्खेवो समचो । १२३१, वहिउदीरणाए तत्थ इमाणि तेरस अणियोगदाराणि--समुकित्तणा जाव अध्याबहुग त्ति | समुक्त्तिणाणु० दुचिहो णि० - ओधे० श्रादेसे० । ओघेण अस्थि संखेअभागवड्डी हाणी संखेजगुणवड्डी हाणी अवष्टि० अवत्त । एवं , मणुसदिए । प्रादेसेण रहय० अस्थि संखेजभागवड्डि-हाणि-अत्रट्ठा० । एयं सचणेरड्य०पंचितिरि अपज भणुसअपज० मध्यदेवा ति । तिरिक्ख-पंचिंदियतिरिक्खतियम्मि अस्थि संखे०भागवड्डी-हाणी संखे गुणबढी हाणी अबढाणे । एवं जाब । २३२. सामिर्माणुछ दुविहीनी श्रीवासप्रदिर्स फाशोघेण संखे०भागवष्टी हाणी संखे०गुणवड्डी अवट्ठा० कस्स ? अण्णद० सम्माह० मिच्छाइ० । संखे०. गुणहाणी कस्स ? अण्णद० सम्माइ० । अवरा० भुजगारभंगो । एवं मणुसतिए । चाहिए | किन्तु इतनी विशेषता है कि पश्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त, मनुष्य अपर्याप्त और अनुदिशसे लेकर सार्थसिद्रितकके देवोंमें उत्कृष्ट वृद्धि, हामि और अवस्थान तीनों ही समान है। इसीप्रकार अनाहारक मार्गरणा तक जानना चाहिए। ६२३०. जघन्यका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-श्रोध और आदेश । घिसे जघन्य वृद्धि, हानि और अवस्थान तीनों ही समान हैं। इसीप्रकार चारों गतियोंमें जानना चाहिए । तथा इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । इसप्रकार पदनिक्षेप समाप्त हुआ। F२३१. बृद्धि उद्दीरणाका प्रकरण है। उसमें समुत्कीर्तनासे लेकर अल्पबहुत्व तक ये तेरह अनुयोगद्वार हैं। समुत्कीर्तनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है—ोष और श्रादेश। भोधसे संख्यातभागवृद्धि, संख्यातमागहानि, संख्यातगुणवृद्धि, संख्यातगुणहानि, अवस्थित और अवक्तव्य उदीरणा है। इसीप्रकार मनुष्यत्रिक में जानना चाहिए। प्रादेशसे नारकियों में संख्यातभागवृद्धि, संख्यातभागहानि और अवस्थित उदीरणा है। इसीप्रकार सत्र मारकी, पवेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त, मनुध्य अपर्याप्त और सम देवों में जानना चाहिए। सामान्य तिर्यन्च और पझेन्द्रिय तिर्यचत्रिकमें संख्यातभागवृद्धि, संख्यातभागहानि, संख्यातगुणवृद्धि और अवस्थान है । इसीप्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। २३२ स्वामित्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओष और आदेश । ओघसे संख्यातभागवृद्धि, संख्यातभागहानि,, संख्यातगुणवृद्धि और अवस्थान किसके होते है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्याष्टिके होते हैं । संख्यातगुणहानि किसके होती है ! अन्यतर सम्यग्दृष्टिके होती है। प्रवक्तव्य उदीरणाका भंग भुजगारके समान है। इसी प्रकार मनुष्य १ आ. प्रतो गुणचड्ढी हाणी प्रयट्ठाण० इति पाठः ।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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