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________________ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [वेदन २०८. णाणाजीवहि भंगविचयाणुगमेण दुविहो णिद्देसो-प्रोषेण आदे य। ओघेण भुज०-अप्प०-अबढि उदीर० णिय. अस्थि, सिया एदे अवतव्वो च, सिया एदे च अवनव्वगा च । भंगा तिएिण ३। आ । रइय० अहि. णियमा अस्थि, सेसपदा भयणिजा। भंगा ९ । एवं सव्वणेरहमा सवपंचिंदियतिरिक्ख-सव्वमणुस-सव्वदेवा चि । वरि मणुस अप सवपदा भयणिजा । भंगा २६ । मसतिए भंगा २७ । तिरिक्खेसु सुज अप्प०-अवहिणिय० । एवं जाव० । २०९. भागाभागाणु० दुविहो णि-प्रोघेण आदेसेण य | ओघेण भुज असवजीची सविसरमामहाराशिवट्ठि. असंखेज्जा भागा | अवस अवस्थित पदके उदोरक जीव नियमसे हैं। कदाचिन् ये नाना जीव हैं और एक अवक्तव्यपर उदीरक जीव है। कदाचित् ये नाना जीव हैं और प्रवक्तव्यपदके उदीरक जीव नाना है। भंग तीन हैं ३ | आदेशसे नारकियोंमें अवस्थितपदके उदीरक जीव नियमसे हैं। शेषपद भजनी । हैं। भंग ५ हैं। इसी प्रकार सब नारकी, सब पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च, सब मनुष्य और सक देवा | जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सष पद भजनीय है। भंग २६ हैं। मनुष्यत्रिको भंग २७ हैं। तियोश्चोंमे भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपदक उदीरक जीव नियमसे हैं। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए। विशेषार्थ सब नारकी, सब पछेन्द्रिय तिर्थब्च और सब देवों में एक ध्रुव पद है और दो अध्रव पद हैं, इसलिए एक जीव और नाना जीवोंकी अपेक्षा इन पदोंके ध्रुय भंग सहित नी भंग होते हैं। मनुष्य अपर्याप्तकोंमें तीन अध्रुव पद हैं, इसलिए इनके एक और नाना जीवोंकी) अपेक्षा छब्बीस भंग होते हैं। मनुष्यत्रिकमें एक ध्रुव पद और तीन अध्रुव पद हैं, इसलिए इनमें ध्रुव भंगके साथ एक और नाना जीवोंकी अपेक्षा सत्ताईस भंग होते हैं। २०८ भागाभागानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है.-प्रोध और आदेश । प्रोषसे भुजगार और अल्पतरपदके उदीरक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण है। अवस्थितपदके उदीरक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं। तथा अवक्तव्य पदके उदीरक जीव अनन्त भागप्रमाण हैं। आदेशसे नारकियोंमें ओघके समान भंग है। किन्तु प्रवक्तव्यपदके उदीरक जीव नहीं हैं। इसी प्रकार सब नारकी, सब तियेकच, मनुष्य अपर्याप्त, सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर अपराजित तकके देवोंमें जानना चाहिए। मनुष्योमें भुजगार, अल्पतर और प्रवक्तव्यपदके उदीरक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। अवस्थितपदके उदीरक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण है। इसी प्रकार मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यनियों में जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि असंख्यातके स्थानमें संख्यात करना चाहिए। इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धिमें जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें अषक्तव्यपदके उदीरक जीव नहीं हैं। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए। ६२०६. परिमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है--प्रोच और आदेश । श्रोधसे भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपदके उदीरक जीव कितने हैं ? अनन्त हैं। अवक्तव्यपदके उदीरक जीव कितने हैं ? संख्यात है। इसी प्रकार तिर्यालयों में जानना चाहिए। किन्तु इतनी
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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