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________________ शक:-Tीम जयधवलासहिदे कसायपाटुडे गणंतरसमए तत्तियमेत्तावदाणेणूत रिदो से काले सदरमा सारिणदो, पुणो । भुजगारपवेसगो जादो । लद्धमंतरं होह। १९९. संयहि अप्प.पवे. उच्चदे। तं जहा- भग-दुगुलाहि सह अणि मुदीरणट्ठाणमुदीरेमाणस्स अण्णदरगुणट्ठाणजीवस्स भयवोच्छेदेणेगसमयमप्पदरपज्जए परिणदस्स तदणंतरसमए तत्तियमेत्तेणंतरं होदूण से काले दुगुंछोदयवोच्छेदेण भर दरभावमुनगयस्स लद्धमंतर होइ । अधवा मिच्छाइटिणा सम्मत्ते गहिदे तप्पढमसमपनि मिच्छताणताणुबंधिवोच्छेदेणप्पदरं कादणाणंतरसमए तचियमेत्तेणावहिदस्स एगसमान मंतरं होदूण नदियसमयम्मि भय-दुगुकाणमण्णदरवोच्छेदेणुभयवोच्छेदेण वा लद्धमंतर, होइ । एवमसंजदसम्माइद्विणा संजमासंजमे गहिदे संजदासंजदेण वा संजमे गहिदे अप्पदरस्स एगसमयमेत्तजहण्णंतरोक्लंभो वत्तव्यो। संपहि अवट्टि-पवे. जहएणंतर, उच्चदे । तं जहा सत्त वा अट्ट चा पयडीओ पवेसेमाणगस्स भयागमेणेगसमय भुजगारेणंतरं होदूण तदुवरिमसमपम्मि तत्तियमेतणावद्विदस्स तद्धमंतरं होई ।। एवमप्पदरेण वि अवट्टिदस्स जहएणंतरं साहेयव्यं । जफरसेण अंतोमुटुसं।। करके पुनः तदनन्तर समयमै उतनी ही प्रकृतियोंकी उदीरमगारूप अवस्थित पद द्वारा भुजगार. पदको अन्तरित करके सदनन्तर समयमें जुगुप्साके उदयरूपसे परिवात होकर पुनः भुजगारप्रवेशक हो गया । इसप्रकार भुजगारप्रवेशकका एक समय जघन्य अन्तर प्राप्त होता है। 6 १६८. अब अल्पतरप्रवेशकका कहते हैं। यथा-भय और जुगुप्साके साथ विवत्तिक जदीरणास्थानकी पदारणा करनेवाला अन्यतर गुणस्थानवाला जो जीव भयकी उदयम्युछित्ति . द्वारा एक समय तक अल्पतर पर्यायसे परिणत हुआ, पुनः तदनन्तर समयमें उतनी हो। प्रकृतियोंकी उदीरणा द्वारा अल्पतर पदका अन्तर करके तदनन्तर समयमें जुगुप्साको उदयव्युच्छित्ति द्वारा अल्पतरपरको प्राप्त हुश्रा, उसके अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय प्राप्त होता है। अथवा जो मिथ्याइष्टि जीव सम्यक्त्वको ग्रहणकर उसके प्रथम समयमें मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीकी उदयव्युच्छित्ति द्वारा अल्पतरपदको करता है, पुनः तदनन्तर समयमें उतनी ही प्रकृतियों की उदीरणा द्वारा अल्पतरपदका अन्तर करता है और तीसरे समयमें भय और जुगुप्सासे किसी एक प्रकृतिकी उदयव्युच्छिति द्वारा या दोनोंकी उदयव्युच्छितिद्वारा अल्पतरपद करता है उसके अल्पदरपदका जघन्य अन्तर एक समय प्राप्त होता है। इसीप्रकार असंयतसम्यग्दृष्टिके द्वारा संयमासंयमके ग्रहण करने पर या संयतासंयतके द्वारा संयमके ग्रहण करने पर अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समयमात्र प्राप्त होता है ऐसा कथन करना चाहिए । अब अवस्थितप्रवेशकका जघन्य अन्तर कहते हैं। यथा सात या आठ प्रकृतियोंका प्रवेश करनेवाला जो जीव भयके आगमन द्वारा एक समय तक भुजगारपद करता हुथा उस द्वारा अवस्थित पदका अन्तर करके पुनः तदनन्तर समयमें उतनी प्रकृतियोंके उदय द्वारा अवस्थित पद करता है उसके अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय प्राप्त होता है। इसी प्रकार अल्पतरपदका आश्रय लेकर भी अवस्थितप्रवेशकका जघन्य अन्तर साध लेना चाहिए। * उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है।
SR No.090222
Book TitleKasaypahudam Part 10
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherMantri Sahitya Vibhag Mathura
Publication Year1967
Total Pages407
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size13 MB
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