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________________ गा० ५८ ] उत्तरपत्रिणुभागसंकमे सण्णियासो संजलणाणं, माणसंजलणे णिरुद्धे माया - लोहसंजलणाणं, मायासंजलणे णिरुद्धे लोहसंजलणस्स संकमसंभवोवलं भादो । तत्थाजहण्णभावणियमो अनंतगुणब्भहियत्तं च सुगमं । * लोहसंजलणे णिरुडे पत्थि सरिणयासो । २०६. तत्थण्णेसिमसंभवादो । सेसकसाय - णोकसायाणं जहण्णसण्णियासो एदेणेव सुण देसामा सयभावेण सूचिदो । ૬૫ ९ २०७. संपहिएदेण सूचिदत्थस्स फुडीकरणमुच्चारणाणुगममिह कस्सामो । तं जहा - जहणए पदं । दुविहो णिद्देसो- ओघेण आदेसेण य । ओषेण मिच्छ० जह० अणुभागसंका ० सम्म ०- सम्मामि० सिया अत्थि, सिया णत्थि । जदि अत्थि, सिया संका । जइ संका ० णिय ० अज ० गुणमयिं । असा० जह० अजहण्णं वा, जहण्णादो अज० छाणपदिदा । अट्ठक० - णत्रणोक० णिय० अज० अनंतगुणब्भ० । एवमट्ठक० । ० ९ २०८. सम्म० जह० अणुभागसंका • बारसक० - णवणोक० णिय० अज० अनंतगुणभं । सेसं णत्थि । सम्मामि० जह० अणुभा० संका ० सम्म० - बारसक० - णवणोक० णियमा अज० अअंतगुणब्भ० । सेसा णत्थि । अनंताणुकोध० जह० अणु० संका० दंसणतिय - संक्रमके समय मान, माया और लोभसंज्वलनोंके, मानसंज्वलनके जघन्य अनुभागसंक्रमके समय माया और लोभ संज्वलनों के तथा मायासंज्वलनके जघन्य अनुभागसंक्रमके समय लोभसंज्वलनके संक्रमका सद्भाव पाया जाता है । वहाँ पर विवक्षित प्रकृतिके जघन्य अनुभागसंक्रमके समय उक्त अन्य प्रकृतियोंके अजघन्य अनुभाग के संक्रमका नियम है और वह अनन्तगुणा अधिक होता है ये दोनों बातें सुगम हैं । * लोभस ज्वलन जघन्य अनुभागस क्रमके समय अन्य प्रकृतियोंका सन्निकर्ष 1 $ २०६. क्योंकि वहाँ पर अन्य प्रकृतियाँ नहीं पाई जातीं। यह सूत्र देशामर्षक है । शेष कषायों और नोकषायोंकी मुख्यतासे जघन्य सन्निकर्षका इसी सूत्रसे सूचन हो जाता है । § २०७. अब इससे सूचित हुए अर्थको प्रकट करने के लिए यहाँ पर उच्चारणाका कथन करते हैं । यथा - जघन्य सन्निकर्षका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है- श्रघ और आदेश । श्रघसे मिध्यात्वके जघन्य अनुभागके संक्रामक जीवके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वसत्कर्म कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं। यदि हैं तो वह इनका कदाचित् संक्रामक होता है। यदि संक्रामक है तो नियम अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागका संक्रामक होता है। वह मध्यकी आठ कषायोंके जघन्य अनुभागका भी संक्रामक होता है और अजघन्य अनुभागका भी संक्रामक होता है । यदि वन्य अनुभागका संक्रामक होता है तो जघन्यकी अपेक्षा छह स्थानपतित अजघन्य अनुभागका संक्रामक होता है। शेष आठ कषाय और नौ नोकषायोंके अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागका नियमसे संक्रामक होता है। इसी प्रकार आठ कषायोंके जघन्य अनुभाग के संक्रामकको विवक्षित करके सन्निकर्ष कहना चाहिए । २०८. सम्यक्त्व जघन्य अनुभागका संक्रामक जीव बारह कषायों और नौ नोकषायों के अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागका संक्रामक होता है । वह शेषका सत्कर्मवाला नहीं है । सम्यग्मिध्यात्यके जघन्य अनुभागका संक्रामक जीव सम्यक्त्व, बारह कषाय और नौ नोकषायों के tray कि जघन्य अनुभागका नियमसे संक्रामक होता है । यह शेष प्रकृतियों के सत्कर्म से ह
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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