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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ ॐ एवं सम्मामिच्छत्तस्स वि। वरि सम्मत्तं विजमाणेहि भणियव्वं ।
२०३. सम्मत्तसण्णियासे सम्मामिच्छत्तमविजमाणेहि मिच्छत्तदीहि सह भणिदं । एत्थ पुण सम्म्मत्तं विजमाणेहि सहाणंतगुणब्भहियाजहण्णाणुभागसंजुत्तं वत्तव्यमिदि भणिदं होइ।
* पुरिसवेदस्स जहएणाणुभागं संकामेंतो चदुण्हं कसायाणं णियमा अजहएणमणंतगुणब्भहियं ।
२०४. एत्थ चदुण्हं कसायाणमिदि वुत्ते संजल गचउक्कस्स गहणं कायव्वं, पुरिसवेदजहण्णाणुभागसंकमे णिरुद्धे सेसक०-णोकसायाणमसंभवादो । तेसिं पुण अजहण्णाणुभागमणतगुणब्भहियं चेव संकामेदि, उवरि किट्टिपज्जाएण लद्धजहण्णभावाणमेत्थ तदविरोहादो।
* कोधादितिए उवरिल्लाणं संकामो णियमा अजहएणमपंतगुणभहियं।
२०५. कोधादितिगे संजलणसण्णिदे णिरुद्धे हेडिल्लाणं णत्थि सण्णियासो, असंतकम्मिए तबिरोहादो। उवरिल्लाणमत्थि, कोहसंजलणे णिरुद्ध माण-माया-लोह
* इसी प्रकार सभ्यग्मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागसंक्रमकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । किन्तु इतनी विशेषता है कि यहाँ पर जो सम्यक्त्व सत्कर्मवाले हैं उनके साथ यह सन्निकर्ष कहना चाहिए ।
६२०३. सम्यक्त्वकी मुख्यतासे जो सग्निकर्ष होता है उसमें सम्यग्मिथ्यात्वसे रहित जीवोंके मिथ्यात्व आदिके साथ यह सन्निकर्ष कहा है। किन्तु यहाँ पर सम्यक्त्वसत्कर्म सहित जीवोंके साथ अनन्तगुणे अधिक जघन्य अनुभागसंक्रम संयुक्त सन्निकर्ष कहना चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है।
* पुरुषवेदके जघन्य अनुभागका संक्रामक जीव नियमसे चार कषायोंके अनन्तगुणे अजघन्य अनुभागका संक्रामक होता है ।
६२०४. यहाँ पर 'चार कषायोंके' ऐसा कहने पर चार संज्वलनोंका ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि पुरुषवेदके जघन्य अनुभागसंक्रमके समय शेष कषायों और नोकपायोंका सद्भाव नहीं पाया जाता । मात्र तब चार संज्वलनोंके अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागका ही संक्रामक होता है, क्योंकि इनका कृष्टिरूपसे जघन्य अनुभागसंक्रम आगे पाया जाता है, इसलिए यहाँ पर उनके अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागसंक्रमके होनेमें विरोध नहीं आता।
___ * क्रोधादि तीन संज्वलनोंके जघन्य अनुभागका संक्रामक जीव उपरिम संज्वलनोंके अनन्तगुणे अधिक अजघन्य अनुभागका नियमसे संक्रामक होता है।
६ २०५. संज्वलन संज्ञावाले क्रोधादित्रिकके जघन्य अनुभागसंक्रमके समय पूर्ववर्ती सब प्रकृतियोंका सन्निकर्ष नहीं है, क्योंकि उनके सत्त्वसे रहित्त उक्त जीवके उनका सन्निकर्ष मानने में विरोध पाता है। हाँ उपरिम प्रकृतियोंका सन्निकर्ष है, क्योंकि क्रोधसंज्वलनके जघन्य अनुभाग