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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ तिरिक्ख-पंचिंदियतिरि०दुग-देवा सोहम्मादि जाव सहस्सार ति। एवं विदियादि जाव सत्तमा त्ति । णवरि सम्म० णस्थि । एवं जोणिणी-पंचितिरिक्खअपज०-मणुसअपज०भवण०-वाण०-जोदिसि० ति ।
६१६१. मणुसतिए ओघं । आणदादि जाव णवगेवजा. ति मिच्छ० उक्क० अणुभा० संका० सम्म० सिया अस्थि सिया णस्थि । जइ अस्थि सिया संका० । जइ संका० णियमा उक्क० । सोलसक०-णवणोक० णियमा उक्क० । एवं सोलसक०-गवणो० । सम्म० उक्क० अणुभा० संका० मिच्छ०-बारसक०-णवणोक० णियमा तं तु उक्स्सादो अणुक्कस्समणंतगुणहीणं । अणंताणु०४ सिया अस्थि । जदि अस्थि सिया संका० । जदि संका० तं तु उकस्सादो अणुक्कस्समर्णतगुणहीणं ।
६ १६२. अणुदिसादि सबट्ठा ति मिच्छ० उकस्साणु० संका० सम्म०-सोलसक०णवणोक० णियमा उकस्सं । एवं सोलसक०-णवणोक० । सम्म० उक्क० अणुभागसंका० बारसक०-णवणोक० णियमा तं तु उक्कस्सादो अणुक्कस्समणंतगुणहीणं । अणंताणु०४ सिया
लेकर सहस्रार कल्पतकके देवोंमें जानना चाहिए। इसी प्रकार दूसरी पृथिवी से लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियों जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्वप्रकृति नहीं है। इसी प्रकार योनिनी तिर्यञ्च, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्त, मनुष्य अपर्याप्त, भवनवासी देव, व्यन्तर देव और ज्योतिषी देवोंमें जानना चाहिए।
६ १६१. मनुष्यत्रिकमें ओघके समान भङ्ग है। आनत कल्पसे लेकर नौ ग्रैवेयक तकके देवोंमें मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागके संक्रामकके सम्यक्त्व कदाचित् है और कदाचित् नहीं है । यदि है तो कदाचित् संक्रामक होता है। यदि संक्रामक होता है तो नियमसे उत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक होता है । सोलह कवाय और नौ नोक पायों के नियमसे उत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक होता है । इसी प्रकार सोलह कषाय और नौ नोकरायों की मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। सम्यक्त्वके उत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंका नियमसे संक्रामक होता है । किन्तु वह उत्कृष्ट अनुभागका भी संक्रामक होता है और अनुत्कृष्ट अनुभागका भी संक्रामक होता है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक होता है तो वह अपने उत्कृष्टकी अपेक्षा अनन्तगुणे हीन अनुत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक होता है । अनन्तानुबन्धीचतुष्क कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं। यदि हैं तो कदाचित् संक्रामक होता है और कदाचित् संक्रामक नहीं होता। यदि संक्रामक होता है तो कदाचित् उत्कृष्ट अनुभागका भी संक्रामक होता है और कदाचित अनुत्कृष्ट अनुभागका भी संक्रामक होता है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक होता है तो वह अपने उत्कृष्टकी अपेक्षा अनन्तगुणे हीन अनुत्कुष्ट अनुभागका संक्रामक होता है।
६ १६२. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक जीव सम्यक्त्व, सोलह कपाय और नौ नोकषायोंके नियमसे उत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक होता है। इसी प्रकार सोलह कषाय और नौ नोकषायोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । सम्यक्त्वके उत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक जीव वारह कषाय और नौ नोकषायोंका नियमसे संक्रामक होता है। किन्तु वह उत्कृष्ट अनुभागका भी संक्रामक होता है और अनुत्कृष्ट अनुभागका भी संक्रामक होता है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक होता है तो अपने उत्कृष्टकी अपेक्षा अनन्तगुणे हीन