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गा०५८] उत्तरपयडिअणुभागसंकमे सण्णियासो
પE तं जहा–सण्णियासो दुविहो, जह० उक्क० । उक्कस्से पयदं। दुविहो णिद्देसो-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छत्तस्स उक्क० अणभागसंका० सम्म-सम्मामि० सिया अस्थि सिया णत्थि । जदि अत्थि सिया संका० । जइ संका० णियमा उक्कस्सं । सोलसक०-णवणोक० णियमा संका० तं तु छट्ठाणपदिदं । एवं सोलसक०-णवणोक० । सम्म० उकस्साणुभाग० संका० मिच्छ० णियमा० तं तु छट्ठाणपदिदं। बारसक०-णवणोक. सिया तं तु छट्ठाणपदिदं । अणंताणु०४ सिया अत्थि० । जइ अस्थि सिया संका० तं तु छट्ठाणपदिदं । सम्मामि० णियमा उक्कस्सं । एवं सम्मामि० । णवरि सम्म० सिया अस्थि । जदि अस्थि सिया संका० । जइ संका० णियमा उक्क० । एवंणेरइय० । णवरि सम्मामि० णस्थि । सम्मा० ओघं । णवरि बारसक०-णवणोक० णियमा तं तु छट्ठाणपदिदा। एवं पढमा०
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उत्कृष्टका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । श्रोघसे मिथ्यात्वके उत्कृष्ट अनुभागका संक्रम करनेवाले जीवके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं। यदि हैं तो उनका कदाचित् संक्रामक होता है। यदि संक्रामक होता है तो नियमसे उनके उत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक होता है। सोलह कषाय और नौ नोकषायोंका नियमसे संक्रामक होता है। किन्तु वह उनके उत्कृष्ट अनुभागका.भी संक्रामक होता है और अनुत्कृष्ट अनुभागका भी संक्रामक होता है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक होता है तो उनके छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक होता है। इसी प्रकार सोलह कयाय और नौ नोकषायोंकी मख्यतासे सन्निकर्षे जानना चाहिए । सम्यक्त्वके उत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक जीव मिथ्यात्वका नियमसे संक्रामक होता है। किन्तु वह उत्कृष्ट अनुभागका भी संक्रामक होता है और अनुत्कृष्ट अनुभागका भी संक्रामक होता है । यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक होता है तो वह नियमसे छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक होता है। बारह कपाय और नौ नोकषायोंका कदाचित् संक्रामक होता है। यदि संक्रामक होता है तो उत्कृष्ट अनुभागका भी संक्रामक होता है और अनुत्कृष्ट अनुभागका भी संक्रामक होता है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक होता है तो वह नियमसे छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक होता है। अनन्तानुबन्धीचतुष्क कदाचित् हैं और कदाचित् नहीं हैं । यदि हैं तो उनका कदाचित् संक्रामक होता है। यदि संक्रामक होता है तो उत्कृष्ट अनुभागका भी संक्रामक होता है और अनुत्कृष्ट अनुभागका भी संक्रामक होता है । यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक होता है तो नियमसे छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक होता है । सम्यग्मिध्यात्वका नियमसे उत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक होता है। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इसके सम्यक्त्वप्रकृति कदाचित् है और कदाचित् नहीं है। यदि है तो उसका कदाचित् संक्रामक होता है और कदाचित् संक्रामक नहीं होता। यदि संक्रामक होता है तो नियमसे उत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक होता है। इसी प्रकार नारकियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृति नहीं है। सम्यक्त्वकी मुख्यतासे भङ्ग ओघके समान है। इतनी विशेषता है कि वह बारह कषाय और नौ नोकषायोंका नियमसे संक्रामक होता है। यदि संक्रामक होता है तो उत्कृष्ट अनुभागका भी संक्रामक होता है और अनुत्कृष्ट अनुभागका भी संक्रामक होता है। यदि अनुत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक होता है तो वह नियमसे छह स्थानपतित अनुत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक होता है । इसी प्रकार पहिली पृथिबी, सामान्य तिर्यश्च, पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चद्विक, सामान्य देव और सौधर्म कल्पसे