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गा० ५८ ]
उत्तरपयडिप्रणुभागसंकमे एजीवे कालो
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अत्रणकालो जगकालादो संखेजगुगो घेतव्यो । तत्तो उवरि णियमेण बंधवुड्डीए
अजहण्णाणुभागसमुप्पत्तीदो ।
* अजहण्णाणुभागसंकामओ केवचिरं कालादो होदि ?
११६. सुगमं ।
* जहणणेण तोमुहुत्तं ।
६ १२०. जहण्गाणुभाग संकमादो अजहण्णसं कामयभावमुवणमिय पुणो सव्त्रजहण्गेण कालेग हदसमुप्पत्तीए कदे तदुवलंभादो ।
* उक्कस्से असंखेज्जा लोगा ।
१२१. एयवारं हदसमुप्पत्तियपाओग्गपरिणामेण परिणदस्स पुणो सेसपरिणामेसु उकस्सावट्ठाणकालो असंखे लोगमेत्तो होइ ।
* एवमट्ठकसायां ।
६ १२२. जहा मिच्छत्तस्स जहण्गाजहण्गाणुभाग संकामयकालो परूविदो तहा अडकायाणं पि परूवेयन्त्रो, सुहुमेह दियहदसमुप्पत्तियकम्मेण जहण्गस मित्तं पडि भेदाभावादो ।
* सम्मत्तस्स जहण्णाणुभागसंकामओ केवचिर कालादो होदि ?
कर्मको हतसमुत्पत्तिक करके सत्कर्मके नीचे सर्वोत्कृष्ट अवस्थान काल जवन्य कालकी अपेक्षा संख्यातगुणा ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि उसके ऊपर बन्धकी वृद्धि हो जाने के कारण नियमसे जघन्य अनुभागकी उत्पत्ति हो जाती है ।
* उसके अजघन्य अनुभागके संक्रामकका कितना काल है ?
६ ११६. यह सूत्र सुगम है ।
* जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ।
१२०. क्योंकि जघन्य अनुभागके संक्रमसे अजन्य के संक्रामकभात्रको प्राप्त होकर पुनः सबसे जघन्य कालके द्वारा हतसमुत्पत्तिक करने पर उक्त काल प्राप्त होता है ।
* उत्कृष्ट काल असंख्यात लोकप्रमाण है ।
§ १२१. क्योंकि एक बार हृतसमुत्पत्तिकके योग्य परिणामसे परिणत हुए जीवके शेष परिणामोंमें रहनेका उत्कृष्ट काल असंख्यात लोकप्रमाण है ।
* इसी प्रकार मध्यकी आठ कषायोंका काल जानना चाहिए ।
§ १२२. जिस प्रकार मिध्यात्वके जवन्य और अजघन्य अनुभागके संक्रामकका काल कहा है उसी प्रकार आठ कषायों के कालका भी कथन करना चाहिए, क्योंकि सूक्ष्म एकेन्द्रियसम्बन्धी इतसमुत्पत्तिक कर्म के साथ जवन्य स्वामित्व उभयत्र समान है, इस अपेक्षासे दोनों स्थलोंमें कोई विशेषता नहीं है ।
* सम्यक्त्वके जघन्य अनुभाग के संक्रामकका कितना काल है ?
१ श्रा० प्रतौ तदो ता• प्रतौ तदो (हा) इति पाठः ।