________________
४२ जयधवलासाहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो६ ११४. दसणमोहक्खवणाए पढमाणुभागखंडयं घादिय तदणंतरसमए अणुकस्साणुभागसंकामयत्तमवगयस्स विदियाणुभागखंडयप्पहुडि जाव चरिमाणुभागखंडयचरिमफालि ति ताव सम्मामिच्छत्तस्स अणुकस्साणुभागसंकामयकालो घेत्तव्यो । एवं सम्मत्तस्स वि। णवरि जाब समयाहियावलियअक्खीणदंसणमोहणीओ ताव भवदि ।
एवमोघो समत्तो। ६ ११५. आदेसेण सव्वत्थ विहत्तिभंगो।
® एत्तो एयजीवेण कालो जहएणो।
६११६. एतो उकस्सकालणिदेसादो उपरि एयजीवेण जहण्णाणुभागसंकामयकालो विहासियव्यो त्ति वुत्तं होइ ।
* मिच्छत्तस्स जहण्णाणुभागसंकामो केवचिरं कालादो होदि ? .६११७. सुगमं । - जहएणुकस्सेण अंतोमुहुत्तं ।
६ ११८. जहण्णेण ताव सुहुमेह दियस्स हदसमुप्पत्तियकम्मेण जहण्णओर अवट्ठाणकालो अंतोमुहुत्तमेत्तो होइ । उकस्सेण हदसमुप्पतियं कादण सव्वुक्कस्सेण संतस्स हेट्टदो
११४. दर्शनमोहनीयकी क्षपणा में प्रथम अनुभागकाण्डकका घात करके तदनन्तर समयमें जो अनुत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक हो गया है उसके दसरे अनभागकाण्डकसे लेकर अन्तिम अनुभाग काण्डककी अन्तिम फालि तक तो सम्यग्मिथ्यात्वके अनुत्कृष्ट अनुभागके संक्रम करानेका काल ग्रहण करना चाहिए। तथा इसी प्रकार सम्यक्त्वके अनुत्कृष्ट अनुभागके संक्रमका काल भी ग्रहण करना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इसकी अपेक्षा दर्शनमोहनीयकी क्षपणामें एक समय अधिक एक श्रावलि काल शेष रहने तक यह काल होता है।
. इस प्रकार श्रोध प्ररूपणा समाप्त हुई। ६ ११५. आदेशकी अपेक्षा सर्वत्र अनुभागविभक्तिके समान भङ्ग है।
विशेषार्थ-अनुभागविभक्तिमें नरकगति आदि मार्गणाओंमें उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागसत्कर्मका जो जघन्य और उत्कृष्ट काल कहा है वह अविकल यहाँ बन जाता है, इसलिए यहाँ पर उसे अनुभागविभक्तिके समान जाननेकी सूचना की है।
* आगे एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल कहते हैं।
६ ११६. 'एत्तो' अर्थात् उत्कृष्ट कालका निर्देश करनेके बाद एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अनुभागके संक्रामकके कालका व्याख्यान करना चाहिए यह उक्त कथनका तात्पर्य है ।
* मिथ्यात्वके जघन्य अनुभागके संक्रामकका कितना काल है ? ६ ११७. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है।
६ ११८. सर्व प्रथम जघन्य कालका खुलासा करते हैं-सूक्ष्म एकेन्द्रियसम्बन्धी हतसमुत्पत्तिक कर्मके साथ जघन्य अवस्थान काल अन्तर्मुहूर्त है। अब उत्कृष्ट कालका खुलासा करते हैं
१ श्रा०प्रतौ जहएणदो ता. प्रतौ जहरणदो (श्रो) इति पाठः ।