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गा० ५८ ]
उत्तरपयडि अणुभागसंकमे एयजीवेण कालो
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तदुकस्साणुभागसं काम होण सव्वल हुं दंसणमोहक्खाणं पट्ठविय पढमाणुभागखंडयं घादिय अणुकस्साणुभागसंकामओ जादो, लद्धो सम्मत्त - सम्मामिच्छत्ताणमुकस्साणुभागसंकामयजहण्णकालो अंतोमुहुत्तमेत्तो |
* उक्कस्सेण वेछावट्टिसागरोवमाणि सादिरेयाणि ।
§ ११२. तं कथं १एको णिस्संतकम्मिय मिच्छाइट्ठी सम्मत्तं घेत्तणुकस्साणुभागसंकामओ जादो । तदो कमेण मिच्छत्तं गंतूण पलिदोवमस्स असंखे० भागमेत्तकालं सम्मत्त सम्मामिच्छत्ताणि उब्वेल्लेमाणो संमयाविरोहेण सम्मत्तं पडिवण्णो पढमछावट्ठि परिभमियमिच्छत्तं गंतूण पलिदोत्रम ० असंखे ० भागमेत्तकाल मुब्धेल्लणार परिणमिय पुत्रं व सम्मत्तं घेत्तूण विदियछावट्ठि परिभमिय तदवसाणे मिच्छत्तं पडिवण्णो सव्बुक्कस्सेणुव्वेल्लणकालेग सम्मत्तसम्मामिच्छाणि उव्वेल्लिहूण असंकामगो जादो, लद्धो तीहि पलिदो० असंखे ० भागेहि अन्भहियवेछावट्टिसागरोत्रममेतो पयदुक्कस्सकालो ।
* अणुक्कस्साणुभागसंकामओ केवचिरं कालादो होदि ? ११३. सुगमं ।
* जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ।
अनुभागका संक्रामक होकर तथा अतिशीघ्र दर्शनमोहनीयकी क्षपणाका प्रस्थापक होकर और प्रथम भागकाण्डका घात करके अनुत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक हो गया । इस प्रकार सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व उत्कृष्ट अनुभागके संक्रमका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त प्राप्त हो गया ।
* तथा उत्कृष्ट कोल साधिक दो छ्यासठ सागरप्रमाण है ।
$ ११२. शंका- यह काल कैसे प्राप्त होता है ?
समाधान- सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी सत्तासे रहित एक मिध्यादृष्टि जीव सम्यक्त्वको प्राप्त करके सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व के उत्कृष्ट अनुभागका संक्रामक हो गया । अनन्तर क्रमसे मिथ्यात्वको प्राप्त कर पल्यके श्रसंख्यातवें भागप्रमाण काल तक सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना करता हुआ यथाविधि सम्यक्त्वको प्राप्त हो गया और प्रथम छयासठ सागर काल तक सम्यक्त्वके साथ परिभ्रमण करके पुनः मिथ्यात्वमें जाकर पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण काल तक उक्त दोनों कर्मोंकी उद्वेलना करने लगा । पुनः पहले के समान सम्यक्त्वको प्राप्त करके और दूसरी बार छयासठ सागर काल तक उसके साथ भ्रमण करके उसके अन्तमें मिथ्यात्रको प्राप्त हो गया । तथा वहां सबसे उत्कृष्ट उद्वेलना कालके द्वारा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वकी उद्वेलना करके उनका असंक्रामक हो गया । इस प्रकार सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्त्रका तीन बार पल्यके असंख्यातवें भागसे अधिक दो छयासठ सागर कालप्रमाण उत्कृष्ट काल प्राप्त होता है ।
* उनके अनुत्कृष्ट अनुभागके संक्रामकका कितना काल है ?
६ ११३. यह सूत्र सुगम है ।
* जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है ।
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