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________________ ४१३ गा०५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे पदक्खेवो गलिदावसेसजहण्णसंतकम्मावलंबणेण पयदसामित्तविहाणहूँ तहा करणादो । एइदिएसु चेत्र पडिवक्खबंधगद्धा किण्ग गालिदा ? ण, एई दियपडिवक्खबंधगद्धादो सण्णि.. पंचिदिए पडिबक्खबंधगद्धाए संखेजगुणत्तवलंभादो। कुदो एदमवगम्मदे ? 'सव्वत्थोवा एई दियाणमरदि-सोगबंधगद्धा । बीइदिय बंधगद्धा संखेजगुणा । एवं तीइदिय०चउरिदिय०-असण्णि०-सण्णिबंधगद्धाओ जहाकम संखेजगुणाओ' ति परूविदद्धप्पाबहुगादो । तदो एवंविहपडिवक्खबंधगद्धं गालेदूण सामित्तविहाणटुं सण्णीसुप्पोइदो त्ति दहव्वं । तदेवाह-'सबमहंतिमरदि-सोगबंधगद्धं कादणे ति । सण्णीसु अरदि-सोगवंधगद्धा जहण्णा वि अस्थि उकस्सा वि अस्थि । तत्थ सव्वुक्कस्राियमरदिसोगबंधगद्ध कादूण हस्स-रदीणं पदेसग्गमधट्ठिदीए गालदि ति बुत्तं होइ । एवं पडिवक्खबंधगद्ध गालिदूणावहिवस्स पुणो वि सगबंधकालभंतरे आवलियमेतकालं गालणसंभवो ति पदुप्पायट्टमाह-'हस्स-रदीओ पबद्धाओ' ति । हस्स रदिबंधे पारद्धे णकवंधवसेण संकमो बहुगो होदि ति णासंकणिजं, बंधावलियमेत्तकालब्भंतरे णवकबंधपदेसाणं संकमपाओग्गताभावादो। ण च सगबंधपारंभे पडिच्छिजमाणदबस्स बहुत्तमासंकणिजं, तस्स वि आवलियमेत्तकालं संकमाभावदसणादो। तदो बचे हुए जघन्य सत्कर्मके अबलम्बन द्वारा प्रकृत स्वामित्वका विधान करनेके लिए उस प्रकारसे किया है। शंका-एकेन्द्रियोंमें ही प्रतिपक्ष बन्धककालको क्यों नहीं गलाया ? समाधान नहीं, क्योंकि एकेन्द्रियों के प्रतिपक्ष बन्धककालसे संज्ञी पञ्चेन्द्रियोंमें प्रतिपक्ष बन्धककाल संख्यातगुणा उपलब्ध होता है। शंका-यह किस प्रमाणसे जाना जाता है ? समाधान-एकेन्द्रियोंमें अरति-शोकका बन्धककाल सबसे स्तोक है । उससे द्वीन्द्रियों में बन्धककाल संख्यातगुणा है । इस प्रकार त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञी और संज्ञी जीवों में बन्धककाल क्रमसे संख्यातगुणे हैं । इस प्रकार कहे गये काल विषयक अल्पबहुत्वसे जाना जाता है । इसलिए इस प्रकारके प्रतिपक्ष बन्धककालको गलाकर स्वामित्वका विधान करने के लिए संज्ञियों में उत्पन्न कराया ऐसा जानना चाहिए। यही कहा है-'सव्वमहंतिमदि-सोगबंधगद्धं कादण' । संज्ञियोंमें अरति-शोकका बन्धककाल जघन्य भी है और उत्कृष्ट भी है। उसमेंसे अरतिशोकके सर्वोत्कृष्ट बन्धककालको करके हास्य-रतिके प्रदेशाप्रको अधःस्थितिके द्वारा गलाता है यह उक्त कथनका तात्पर्य है । इस प्रकार प्रतिपक्ष बन्धककालको गलाकर अवस्थित हुए जीवके फिर भी अपने बन्धककालके भीतर एक आवलिकाल तक गलना सम्भव है इस बातका कथन करनेके लिए कहा है ---'हस्य-रदीओ पबद्धाओ।' हास्य-रतिका बन्ध प्रारम्भ होने पर नवकवन्धके कारण संक्रम बहुत होता है ऐसी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि बन्धावलिमात्र कालके भीतर नवकबन्धके प्रदेश संक्रमके योग्य नहीं होते। अपने बन्धका प्रारम्भ होने पर प्रतिग्राह्यमान द्रव्य बहुत होता है ऐसी भी आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि उसका भी एक श्रावलिकाल
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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