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________________ ક जयधवनासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो६ अवत्त०संका० असंखे० भागो । एवं मणुसपजत्तमणुसिणि० । णवरि संखेनं कायव्वं । ६५२७. आणदादि णव गेवजा ति मिच्छ० सम्म० सम्मामि० ओघं । अणंताणु०चउक्क० भुज० संखे० भागो । अप्प० संखेजा भागा। अवढि० अवत्त० असंखे० भागो। बार सक० पुरि वे०.भय-दुगुच्छा० भुज०संका० संखेजा भागा । अप्प०. संका० संखे० भागो । अवढि०संका० असंखे० भागो । एवमरदिसोगा० । णवरि अवढि० संका० णत्थि । णqसयवेद इत्थिवेद-हस्स-रइ० भुज० संखे० भागो। अप्प० संखेजा भागा । अणुद्दिसादि सबट्ठा ति मिच्छ० सम्मामि० इस्थिवे०-णवंस० णत्थि भागाभागो। अणंताणु०४ भुज०संका० असंखे० भागो। अप्प० असंखेजा भागा । बारसक० -पुरिसवे०-छण्णोक० आणदभंगो । णवरि सबढे संखेजंकायव्वं एवं जाव० । .. ६५२८. परिमाणाणुगमेण दुविहो णि सो ओघेण आदेसेण य । ओघेण दंसणतिय सव्वपद संका० केत्तिया ? असंखेजा । सोलसक०-णवणोक० सयपद० केतिया ? अणंता । णवरि अवत्त०संका० केति० १ संखेजा । अणंताणु०४ अवत्त० संका० है । सोलह कषाय और नौ नोकषायोंका भङ्ग नारकियोंके समान है । इतनी विशषता है कि बारह कषाय और नौ नोकषायोंके प्रवक्तव्य संक्रामक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। इसी प्रकार मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि असंख्यातके स्थानमें संख्यात करना चाहिए। ६५२७. आनत कल्पसे लेकर नौ वेयक तकके देवोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वका भङ्ग ओघके समान है। अनन्तानुबन्धी चतुष्कके भुजगार संक्रामक जीव संख्यातवें भागप्रमाण हैं। अल्पतरसंक्रामक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं । अवस्थित और अवक्तव्य संक्रामक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। अवस्थित और अवक्तव्यसंक्रामक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साके भुजगारसंक्रामक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। अल्पतरसंक्रामक जीव संख्यातवें भागप्रमाण हैं। अवस्थितसंक्रामक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। इसी प्रकार अरति और शोककी अपेक्षा जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि श्रवस्थितसंक्रामक जीव नहीं हैं । नपुंसकवेद, स्त्रीवेद, हास्य और रतिके भुजगार संक्रामक जीव संख्यातवें भागप्रमाण हैं। अल्पतरसंक्रामक जीव संख्यात बहुभागप्रमाण हैं। अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और नपुंसकवेद की अपेक्षा भागाभाग नहीं है । अनन्तानुबन्धीचतुष्कके भुजगार संक्रामक जीव असंख्यातवें भागप्रमाण हैं। अल्पतरसंक्रामक जीव असंख्यात बहुभागप्रमाण हैं । बारह कषाय, पुरुषवेद और छह नोकषायोंका भङ्ग आनत कल्पके समान हैं। इतनी विशेषता है कि असंख्यातके स्थानमें संख्यात करना चाहिए । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक ले जाना चाहिए। ६५२८. परिमाणानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । मोघसे तीन दर्शनमोहनीयके सब पदोके संक्रामक जीव कितने हैं ? सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके सब पदोंके संक्रामक जीव तिने हैं ? अनन्त हैं। इतनी विशेषता है कि अवक्तव्यसंक्रामक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। तथा अनन्तानुबन्धी चतुष्कके अवक्तव्य संक्रामक जीव असंख्यात हैं। १. 'संखेज्जगुणं' ता०।
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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