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________________ गा०५८] उत्तरपडिपदेससंकमे भुजगारो ३४५ देसूणाणि । बारसक०-पुरिसवेद-भय-दुगुछ० भुज० अप्प० संका० जह० एयसमयो । उक्क० पलिदो० असंखे भागो। अवढि० मिच्छत्तमंगो। इत्थिवेद-णqसवे. भुज० संका० मिच्छत्तभंगो। अप्प०संका० जह० एयस० । उक० अंतोमु० । चदुणोक० भुज. अप्प०संका० जह• एयसमओ। उक० अंतोमु० । एवं सव्वणेरइएसु । णवरि सगहिदी देसूणा। ६४६०. तिरिक्खेसु मिच्छ० सम्म०-सम्मामि० ओघं । अर्णताणु०४ भुज० जह• एयस० । उक्क० तिण्णिपलिदो० सादिरेयाणि। अप्प०संका. जह• एयस० । उक्क० तिणिपलिदो० देसूणाणि । अबढि० अवत्त० ओघं। बारसक०-पुरिसवे.. भय-दुगुछ० भुज० अप्प० अवढि० ओघं । इथिवे. भुज० पुरिसवे० अवढि० जह. एयस० । उक० तिणिपलिदो० देसूणाणि। इथिवेद-अप्प०संका० ओघं । णस० भुज० संका० जह० एयस० । उक्क० पुचकोडी देसूणा । अप्प०संका० ओघं० । चदुणोक० भुज. अप्प० ओघं । वेद, भय और जुगुप्साके भुजगार और अल्पतर संक्रामकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अवस्थित पदका भङ्ग मिथ्यात्वके समान है। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके भजगार संक्रामकका भन मिथ्वात्वके समान है। अल्पतर संक्रा. मकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तमुहूर्त है । चार नोकषायोंके भुजगार और अल्पतर संक्रामकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तमुहूर्त है। इसी प्रकार सब नारकियोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि कुछ कम अपनी अपनी स्थिति कहनी चाहिए। विशेषार्थ—पहले ओघप्ररूपणाके समय सब प्रकृतियोंके अलग-अलग पदोंके जघन्य और उत्कृष्ट अन्तरकालका स्पष्टीकरण कर आये हैं । उसी प्रकार यहाँपर जिन प्रकृतियोंके जो पद सम्भव हैं उनके अन्तरकालको समझ लेना चाहिए। मात्र अोधप्ररूपणाके समय उत्कृष्ट अन्तरकाल बतलाते समय जहाँ सामान्य नारकियोंकी और प्रत्येक पृथिवीके नारकियोंकी उत्कृष्ट स्थितिसे अधिक अन्तरकाल बतलाया है वहाँ नारकियोंमें कुछ कम अपनी-अपनी उत्कृष्ट स्थिति ले लेनी चाहिए। ६४६०. तिर्यश्चोंमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भङ्ग ओघके समान है। अनन्तानुबन्धी चतुष्कके भुजगार संक्रामकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर• काल कुछ कम तीन पल्य है । अवस्थित और प्रवक्तव्य संक्रामकका भङ्ग पोषके समान है। बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित संक्रामकका भङ्ग ओघके समान है। स्त्रीवेदके भुजगार और पुरुषवेदके अवस्थित संक्रामकका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम तीन पल्य है। स्त्रीवेदके अल्पतर संक्रामकका भङ्ग ओघके समान है। नपुंसकवेदके भुजगारसंक्रमका जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल कुछ कम एक पूर्वकोटि है । अल्पतर संक्रामकका भङ्ग भोपके समान है। चार नोकषायों के भुजगार और अल्पतर संक्रामकका भङ्ग ओषके समान है। ४४
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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