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जयधवलास हिदे कसायपाहुडे
कालेणुव्वेल्लमाणयस्स चरिमट्ठिदिखंडए पढमसमए लद्धमंतरं होई । * उकस्सेण उवडपोग्गलपरियहं ।
§ ४३७. तं कधं ? अणादियमिच्छाइट्ठी सम्मत्तमुप्पाइय सव्वलहु मिच्छत्तं गंतूण जहण्णुव्वेल्लका लेणुव्वेल्लमाणो चरिमट्ठिदिखंडयम्मि भुजगार संकमस्सादि काढूणंत रिय देखणद्धपोग्गलपरियड' परिभमिय पुणो पलिदोवमा संखेजभागमेत्तसेसे सिज्झणकाले सम्मत्तं घेत्तण मिच्छत्तपडिवादेणुव्वेल्लेमाणयस्स चरिमे ट्ठिदिखंडए लद्धमंतरं कायन्त्रं । एवमादिल्लंतिल्लेहि पलिदो॰ असंखे० भागंतो मुहुत्तेहि परिहीणद्वयोग्गल परियमेत्तं पयदुकस्संतरमा होदि ।
* अप्पदरावत्तव्वसंकामयंतरं केवचिरं कालादो होदि ? १४३८. सुगमं ।
* जहणणे अंतोमुहुत्तं ।
४३६. अप्पयरस् ताव उच्चदे | मिच्छाइट्ठी सम्मत्तस्स अप्पयरसंकमं कुणमाणो सम्मत्तं पडिवण्णो । तत्थ सव्वजहणंतोमुहुत्तमेत्तमंतरिय पुणो मिच्छत्तं गदो, तस्स बिदिय - समए लद्धमंतरं होई । अवत्तव्वसंकमस्स वि सम्मत्तादो मिच्छतं पडिवण्णस्स पढमसम
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[ बंधगो ६
करके अतिशीघ्र मिथ्यात्वमें जाकर सबसे जघन्य उद्वेलना करनेवाले जीवके अन्तिम स्थितिकाण्डकके प्रथम समय अन्तरकाल प्राप्त होता है।
* उत्कृष्ट अन्तर उपार्श्वपुद्गल परिवर्तन प्रमाण है ।
६ ४३७. शंका
—वह कैसे ?
समाधान — जो अनादि मिध्यादृष्टि जीव सम्यक्त्वको उत्पन्न करके तथा अतिशीघ्र मिध्यात्वमें जाकर जघन्य उद्वेलना कालके द्वारा उद्वेलना करता हुआ चरम स्थितिकाण्डक प्राप्त होने पर भुजगार संक्रमका प्रारम्भ करके तथा उसका अन्तर करके कुछ कम अर्ध पुद्गल परिवर्तन प्रमाण परिभ्रमण करके पुनः सिद्ध होनेके कालमें पल्यके श्रसंख्यातवें भाग प्रमाण शेष रहने पर सम्यक्त्वको ग्रहण कर और मिथ्यात्वमें जाकर पुनः सम्यक्त्वकी उद्वेलना करते हुए अन्तिम स्थितिकाण्डकमें स्थित होता है उसके भुजगारसंक्रमका उत्कृष्ट अन्तर काल प्राप्त करना चाहिए । इस प्रकार प्रारम्भ और अन्तके पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण और अन्तर्मुहूर्तसे हीन अ पुद्गल परिवर्तन मात्र प्रकृत उत्कृष्ट अन्तरकालका प्रमाण होता है ।
* अल्पतर और अवक्तव्यसंक्रामकोंका अन्तरकाल कितना है ? ४३८. यह सूत्र सुगम है ।
* जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है ।
४३. उनमें से सर्व प्रथम अल्पतर संक्रामकका जघन्य अन्तरकाल कहते हैं - एक मिपादृष्टि जीव सम्यक्त्वका अल्पतर संक्रम करता हुआ सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ। वहाँ पर सबसे जघन्य अन्तर्मुहूर्त प्रमाण कालका अन्तर करके मिध्यात्वमें गया । उसके दूसरे समय में यह जघन्य अन्तरकाल प्राप्त हो जाता है। इसी प्रकार जो जीव सम्यक्त्वसे मिध्यात्वमें जाकर उसके प्रथम