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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ णवंस० अत्थि अप्प० । अणंताणु०४-चदुणोक० अत्थि भुज० अप्प० । बारसक०पुरिसवेद-भय-दुगुछा० अत्थि भुज० अप्प० अवट्ठिः । एवं जाव० ।
सामित्तं ।
३१४. एवं समुक्कित्तिदाणं भुजगारादिपदाणमिदाणिं सामित्तमहिकीरदि त्ति अहियारसंभालणमेदेण कयं होइ। तस्स दुविहो णिद्द सो ओघादेसभेएण। तत्थोघेण पयडि परिवाडीए भुजगारादिपदाणं मित्त विहाणं कुणमाणो पुच्छावकमाह ।
* मिच्छत्तस्स भुजगारसंकामो को होइ ? ६३१५. सुगम।
* पढमसम्मत्तमुप्पादयमाणगो पढमसमए अवत्तव्वसंकामगो। सेसेसु समएसु जाव गुणसंकमो ताव भुजगारसंकामगो।
६३१६. पढमसम्मत्तमुप्पादेमाणगो तदुप्पत्तिपढमसमए मिच्छत्तस्सावत्तव्वसंकमं कुणइ । पुनमसंकेतस्स तस्स ताघे 'चेच सम्मत्त-सम्मामिच्छत्तसरूवेण . संकंतिदसणादो ।
सेसेसु पुण विदियादिसमएसु भुजगारसंकामगो होदि जाव - गुणसंकमचरिमसमओ • ति । कुदो ? पडिसमयमसंखेज्जगुणाए सेढीए गुणसंकमेण मिच्छत्तपदेसग्गस्स तत्थ संकंति
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और अवस्थित संक्रामक जीव हैं । मनुष्यत्रिकमें ओघके समान भङ्ग है । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धितकके देवोंमें मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके अल्पतरसंक्रम जीव हैं। अनन्तानुबन्धीचतुष्क और चार नोकषायोंके भुजगार और अल्पतरसंक्रामक जीव हैं । बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साके भुजगार, अल्पतर और अवस्थितसंक्रामक जीव हैं। इसी प्रकार अनाहारक मागेणा तक जानना चाहिए।
* अब स्वामित्वका अधिकार है।
६ ३१४. इस प्रकार जिनकी समुत्कीर्तना की है ऐसे स्वामित्व आदि पदों का इस समय स्वामित्व अधिकृत है इस प्रकार इस सूत्र द्वारा अधिकारकी सम्हाल की गई है। उसका निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । उनमेंसे ओघको अपेक्षा प्रकृतियोंके क्रमानुसार भुजगार आदि पदोंके स्वामित्वका विधान करते हुए पृच्छावाक्यको कहते हैं
* मिथ्यात्वका भुजगार संक्रामक कौन है ? ६३१५. यह सूत्र सुगम है।
* प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करनेवाला जीव प्रथम समयमें अवक्तव्यसंक्रामक है। शेष समयोंमें गुणसंक्रमके होने तक भुजगार संक्रामक है।
६३१६. प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करनेवाला जीव उसके उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें मिथ्यात्वका अवक्तव्यसंक्रम करता है, क्योंकि पहले संक्रमित नहीं होनेवाले उसका उस समय ही सम्यक्त्व और सम्यग्मिध्यात्वरूपसे संक्रमण देखा जाता है। परन्तु द्वितीयादि शेष समयोंमें गुणसंक्रमके अन्तिम समय तक भुजगार संक्रामक होता है, क्योंकि प्रत्येक समयमें असंख्यात गुणित श्रेणिरूपसे गुणसंक्रमके द्वारा मिथ्यात्वके प्रदेशोंका सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वमें संक्रमण