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________________ ___ २६३ गा०५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे भुजगारो गलणं मोत्तण संचयाणुवलद्धीदो। तदो ण तेसिमवद्विदसंक्रमसंभवो ति । किं कारणमेदेसिं बंधकाले आगमणिज्जराणं सरिसत्ताभावो चे वुच्चदे-इत्थिवेद-हस्स-रदीणमेयसमयणिज्जरा समयपबद्धस्स संखेज्जदिभागमेती होइ । णqसयवेदारइसोगाणं पि संखेज्जभागूणसमयपबद्धमत्ता होइ; बंधगद्धापडिभागेण संचयगोवुच्छाणमवट्ठाणब्भुवगमादो। आगमो पुण सव्वेसिमेयसमयपबद्धो संपुण्णो लब्भदे; तत्कालियणवकबंधस्स णिप्पडिवक्खमेदेसि बंधकाले समागमणदंसणादो । एदेण कारणेण परावत्तणपयडीणमवद्विदसंकमो णत्थि त्ति सिद्धं पलिदो० असंखे०भागमेत्तकालं पिरंतरबंधेण विणा आगमणिज्जराणं सरिसभावाणुप्पत्तीदो। एवमोघसमुक्त्तिणा गदा । ६ ३१३. आदेसेण णेरइय० मिच्छ०-अणंताणु०४चउक्क०-सम्मत्त-सम्मामिच्छताणमोघं । बारसक०-पुरिसवेद-भय-दुगुछ० अत्थि भुज० अप्प० अवढि० । इत्थि. णउंस० हस्स-रइ-अरइ-सोगाणमस्थि भुज० अप्प० । एवं सत्रणेरइयतिरिक्ख४ देवा भवणादि जाव णगेवजा ति पंचिंदियतिरिक्खमणुसअपज्ज० सम्म०-सम्मामि० तिण्णिवेद-हस्स-रइ-अरइ-सोगाणमत्थि भुज० अप्प०। [मिच्छ०]सोलसक० भयदुगुछ० अत्थि भुज०अप्प० अबढि० । मणुसतिए ओघं । अणुद्दिसादि सबट्ठा त्ति मिच्छ०-सम्मामि०-इस्थिइसलिए इनका भी अवस्थितसंक्रम सम्भव नहीं है । शंका-इनका बन्धकालमें आगमन और निर्जरा समान नहीं होते इसका क्या कारण है ? समाधान-स्त्रीवेद हास्य और रतिकी एक समयमें होनेवाली निर्जरा समयप्रबद्धके संख्यातवें भागप्रमाण होती है। नपुंसकवेद, अरति और शोककी मी संख्यातवाँ भाग कम समयप्रबद्धप्रमाण निर्जरा होती है, क्योंकि बन्धककालको प्रतिभाग करके सञ्चय गोपुच्छाओंका अवस्थान उपलब्ध होता है। परन्तु उक्त सभी कर्मोकी आय सम्पूर्ण एक समयप्रबद्धप्रमाण उपलब्ध होती है, क्योंकि इन कर्मोंके बन्धकालके भीतर तत्काल होनेवाले नवकबन्धका प्रतिपक्षके बिना आ मन देखा जाता है। इस कारणसे बदल-बदल कर बंधनेवाली प्रकृतियोंका अवस्थितसंक्रम नहीं होता यह सिद्ध हुआ, क्योंकि पल्यके असंख्यातवें भाग प्रमाण काल तक निरन्तर बन्धके बिना आगमन और निर्जराकी समानता नहीं बन सकती। इस प्रकार ओघसमुत्कीर्तना समाप्त हुई। ६३१३. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी चतुष्क, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका भङ्ग ओषके समान है। बारह कषाय, पुरुषवेद, भय और जुगुप्साके भुजगार, अल्पतर और अवस्थित संक्रामक जीव हैं । स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, हास्य, रति, अरति और शोकके भुजगार और अल्पतरसंक्रामक जोक हैं । इसी प्रकार सब नारकी, तिर्यञ्चचतुष्क, सामान्य देव और भवनवासियोंसे लेकर नौ प्रैवेयक तकके देवोंमें जानना चाहिए। पञ्च न्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, तीन वेद, हास्य, रति, अरति और शोकके भुजगार और अल्पतरसंक्रामक जीव हैं । मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय और जुगुप्साके भुजगार अल्पतर
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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