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गा०५८]
उत्तरपयडिपदेससंकमे अप्पाबहुअं माणसंजलणे उक्कस्सपदेससंकमो विसेसाहिओ। * कोहसंजलणे उक्कस्सपदेससंकमो विसेसाहिओ ।
मायासंजलणे उक्कस्सपदेससंकमो विसेसाहिो। * लोभसंजलणे उक्कस्सपदेससंकमो विसेसाहिओ। ६२४३. एदाणि सुत्ताणि सुगमाणि । एवं जाव० तदो उक्स्सपदेसप्पाबहुअं समत्तं । * एत्तो जहएणपदेससंकमदंडो ।
६ २४४. एत्तो उवरि जहण्णपदेससंकमपडिबद्धप्पाबहुअ-दंडओ कायव्यो ति अहियारसंभालणवकमेदं ।
8 सव्वत्थोवो सम्मत्ते जहएणपदेससंकमो।
६२४५. सम्मामिच्छत्तादिसेससवपयडीणं जहण्गपदेससंकमेहितो सम्मत्तजहण्णपदेससंकमो थोवयरो ति सुत्तत्थो ।
ॐ सम्मामिच्छत्ते जहण्णपदेससंकमो असंखेज्जगुणो।
६२४६. कुदो ? दोण्हमेदेसि सामित्तभेदाभावे पि सम्मत्तमूलदव्यादो सम्मामिच्छत्तमूलदव्यस्सासंखेज्जगुणकमेणावट्ठाणदंसणादो । सम्मत्ते उव्वेल्लिदे जो सम्मामिच्छत्तब्वेलणकालो तस्स एयगुणहाणोए असंखेज्जदिभागपमाणतम्भुवगमादो च ।
* उससे मानसंज्वलनका उत्कष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है। * उससे क्रोधसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेप अधिक है। * उससे मायासंज्वलनका उत्कष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है । * उससे लोभसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम विशेष अधिक है।
६२४३. ये सूत्र सुगम हैं। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। इस प्रकार उत्कृष्ट प्रदेशसंक्रम अल्पबहुत्व समाप्त हुआ।
* इससे आगे जघन्य प्रदेशसंक्रम दण्डकका अधिकार है।
६२४४. इससे आगे जघन्य प्रदेशसंक्रमसे सम्बन्ध रखनेवाला अल्पबहुत्वदण्डक करना चाहिए । इस प्रकार अधिकारकी सम्हाल करनेवाला यह सूत्र वचन है ।
* सम्यक्त्वका जघन्य प्रदेशसंक्रम सबसे स्तोक है।।
६२४५. सम्यग्मिथ्यात्व आदि शेष सब प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशसंक्रमसे सम्यक्त्वका जघन्य प्रदेश संक्रम स्तोक है यह इस सूत्रका अर्थ है।
* उससे सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य प्रदेशसंक्रम असंख्यातगुणा है।
६२४६. क्योंकि इन दोनोंके स्वामित्वमें भेद नहीं होने पर भी सम्यक्त्वके मूल द्रव्यसे सम्यग्मिथ्यात्वके मूलद्रव्यका असंख्यातगुणित क्रमसे अवस्थान देखा जाता है। तथा सम्यक्त्वकी उद्वेलना होने पर जो सभ्यग्मिथ्यात्वका उद्वेलनाकाल रहता है उसकी एक गुणहानि असंख्यातवें भागप्रमाण स्वीकार की गई है । अर्थात् वह काल एक गुणहानिके असंख्यातवें भागप्रमाण है ।