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________________ गा०५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे पोसणं રહ ६ १६५. आदेसेण णेरइय० मिच्छ० जह० अजह० पदे०संका० लोग० असंखे० भागो। सेसा० जह० लोग० असंखे०भागो। अजह० लोग० असंखे०भागो, छचोइस भागा वा देसूणा । एवं विदियादि जाव सत्तमा ति । णवरि सगपोसणं । पढमाए खेत। F१६६. तिरिक्खेसु मिन्छ० जह० पदे०संका० लोग० असंखे०भागो। अजह लोग० असंखे०भागो छचोदस० देसूणा। सम्म०-सम्मामि० जह० अजह. जैसा इसके अनुत्कृष्ट प्रदेशसंक्रमके समय कर आये हैं उसी प्रकार यहाँ पर भी कर लेना चाहिए। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य और अजघन्य प्रदेशसंक्रम एकेन्द्रियादि जीवोंके भी सम्भव है। किन्तु ऐसे जीवोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण तथा अतीत स्पर्शन विहारवत्स्वस्थान आदिकी अपेक्षा त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण और मारणान्तिक समुद्धात व उपपादपदकी अपेक्षा सर्वलोकप्रमाण प्राप्त होनेसे वह तत्प्रमाण कहा है। सोलह कषाय और नौ नोकषायोंका जघन्य प्रदेशसंक्रम अधिकतरका क्षपणाके समय और कुछका उपशमनाके समय प्राप्त होता है । यतः ऐसे जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है, इसलिए इन कर्मो के जघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। तथा इनका अजघन्य प्रदेशसंक्रम कुछ गुणस्थानप्रतिपन्न जीवोंको छोड़कर प्रायः सब जीव करते हैं, इसलिए इनके अजघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन सर्वलोकप्रमाण कहा है । ६ १६५. आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्वके जघर, और अजघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है ! तथा अजघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार दूसरी पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तकके नारकियों में जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपना अपना स्पर्शन कहना चाहिए। पहली पृथिवीके नारकियोंमें क्षेत्रके समान स्पर्शन है। विशेषार्थ-नरकमें सर्वत्र सम्यग्दृष्टियोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है, इसलिए इनमें मिथ्यात्वके जघन्य और अजघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है । शेष प्रकृतियोंका जघन्य प्रदेशसंक्रम क्षपितकमांशिक जीवोंके यथास्थान होता है और ऐसे जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है, इसलिए इनके जघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। इनके अजघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण है यह स्पष्ट ही है । शेप कथन सुगम है। ६१६६. तिर्यश्चोंमें मिथ्यात्वके जघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य प्रदेशों के संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य और अजघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्या
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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