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२६० जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ पदे०संका० लोग० असंखे०भागो सब्बलोगो वा । सोलसक०-गवणोक० जह० पदे०. संका० लोग० असंखे भागो। अजह० सव्वलोगो।
१६७. पंचिंदियतिरिक्खतिए मिच्छ०-सम्म०-सम्मामि० तिरिक्खभंगो । सोलसक०-णवणोक० जह० खेत्तं । अजह० पदे०काम० लोग० असंखे०भागो सबलोगो वा। एवं पचिंदियतिरिक्ख०अपज्ज०-मणुसअपज । णवरि मिच्छ० णस्थि । एवं मणुसतिए । णवरि मिच्छ० जह० अजह० पदे०संका० लोग० असंखे०भागो।
तवें भागप्रमाण और सर्वलोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके जघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अजघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने सर्वलोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ-तिर्यञ्चोंमें मिथ्यात्वका जघन्य प्रदेशसंक्रम उत्तम भोगभूमिमें क्षापतकमांशिक जीवके अन्तिम समयमें सम्भव है । यतः ऐसे जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है अतः इनमें मिथ्यात्वके जघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है। तथा सम्यग्दृष्टि तिर्थञ्चोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन वसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण है अतः इनमें मिथ्यात्वके अजघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन उक्त प्रमाण कहा है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिश्यात्वके जघन्य और अजघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवेंभागप्रमाण और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है यह स्पष्ट ही है, क्योंकि सम्यक्त्वका जघन्य और अजघन्य दोनों प्रकारका स्पर्शन तो मिथ्यादृष्टियोंके होता ही है । सम्यग्मिथ्यात्वका भी यह संक्रम मिथ्यादृष्टियोंके सम्भव है और मिथ्यादृष्टि तियेचोंका स्पर्शन उक्त प्रमाण है। सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके जघन्य संक्रमके स्वामित्व पर अलग-अलग विचार करने पर विदित होता है कि इन प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागसे अधिक नहीं बन सकता इसलिए यह उक्त क्षेत्रप्रमाण कहा है । तथा इनका अजघन्य प्रदेशसंक्रम एकेन्द्रियादि सब तिर्यञ्चोंके सम्भव है, इसलिए इनके अजघन्य प्रदेशोंक संक्रामक जीवोंका स्पर्शन सर्वलोकप्रमाण कहा है।
६५६७. पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्चत्रिकमें मिथ्यात्व, सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य और अजघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन सामान्य तिर्यच्चोंके समान है । सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके जघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । अजघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लाकके असंख्यातवें भाग और सर्वलोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि ये मिथ्यात्वक संक्रामक नहीं होते । इसी प्रकार मनुष्यत्रिकमें जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि उनमें मिथ्यात्वके जघन्य और अजघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है।
विशेषार्थ-सामान्य तिर्यन्चोंमें मिथ्यात्वके जघन्य और अजघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चत्रिककी मुख्यतासे ही कहा है। तथा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य और अजघन्य प्रदेशोंके संक्रामकोंका जो स्पर्शन सामान्य तिर्यञ्चोंमें है वह