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________________ २५८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ १६३. सणक्कुमारादि अच्चुदा ति सबपयडि. उक्क० पदे०संका० लोग० असंखे भागो। अणुक्क० सगपोसणं । उवरि खेत्तं । एवं जाव० । १६४. जह० पयदं । दुविहो णि०-ओघेण आदेसेण य । ओघेण मिच्छ० जह० पदे०संका० लोग० असंखे०भागो। अजह० लोग० असंखे०भागो अट्ठचोद्द० देसूणा । सम्म०-सम्मामि० जह० अजह० पदे०संका० लोग० असंखे०भागो अट्ठचोद्द० देसूणा सव्वलोगो वा । सोलसक०-णवणोक० जह० पदे०संका० लोग० असंखे०भागो। अजह सबलोगो। विशेषार्थ--सम्यग्दृष्टि उक्त देवोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन कुछ कम साढ़े तीन और कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण होनेसे इनमें मिथ्यात्वके अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन उक्तप्रमाण कहा है। शेष कर्मों के अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रम उक्त देवोंकी सब अवस्थाओंमें भी सम्भव है, इसलिए उनमें उनके अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण तथा सनालीके कुछ कम साढ़े तीन, कुछ कम आठ और कुछ कम नौ बटे चौदह भाग प्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है। ६१६३. सनत्कुमारसे लेकर अच्युत कल्प तकके देवोंमें सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन अपने-अपने कल्पके स्पर्शनके समान जानना चाहिए। आगे नौ प्रैवेयक आदिमें स्पर्शन क्षेत्रके समान जानना चाहिए । इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए । विशेषार्थ-आगे सनत्कुमार आदि कल्पोंमें मिथ्यादृष्टि और सम्यग्दृष्टि देवोंके स्पर्शनमें कोई फरक नहीं है, इसलिए वहाँ सब प्रकृतियोंके अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन एक साथ कहा है । साथ ही जिस कल्पमें जो स्पर्शन है वही प्राप्त होता है, इसलिए उसे अपने-अपने स्पर्शनके समान जाननेकी सूचना की है । नौ प्रैधेयक आदिमें स्पर्शन क्षेत्रके समान होनेसे सब प्रकृतियोंके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंके स्पर्शनको क्षेत्रके समान जाननेकी सूचना की है । शेष कथन सुगम है। ६१६४. जघन्यका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे मिथ्यात्वके जघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य प्रदेशों के संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग-प्रमाण और त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य और अजघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, त्रसनालीके कुछ कम आठबटे चौदह भाग प्रमाण और सर्वलोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके जघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजवन्य प्रदेशके संक्रामक जीवोंने सर्वलोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। विशेषार्थ-ओघसे मिथ्यात्व का जघन्य प्रदेशसंक्रम क्षपित कमांशिक जीवके क्षपणाके समय होता है, इसलिए इसके जघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है । तथा इसके अजघन्य प्रदेशोंके संक्रामक जीवोंका स्पर्शन जो लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण कहा है सो इसका खुलासा
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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