________________
गा०५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे सण्णियासो
२४१ उक० पदे०संका० सम्मामि०-सोलसक०-णवणोक० णिय० अणुक्क० असंखे गुणही०
१४८. अर्णताणु०कोह. उक० पदे०संका० मिच्छ० सम्मामि० णिय. अणुक० असंखेन्गुणही०, पण्णारसक०-छण्णोक० णिय० तं तु विट्ठाणपदिदं अर्णत. मागहीणं असंखे०भागहीणं । तिण्णं वेदाणं णिय० अणुक्क. असंखे०भोगहीणं । एवं पण्णारसक०-छण्णोक० ।।
६१४६. इत्थिवेद० उक्क० पदे०संका० सोलसक०-अटुणोक० णिय० अणुक्क० असंखे०भागही० । मिच्छ०-सम्मामि० णिय० अणु० असंखेगुणही० । एवं पुरिसणवंसयवेदाणं । एवं सव्वणेरइय-तिरिक्ख०-पंचि० तिरितिय-देवा भवणादि जाव णवगेवजा त्ति ।
१५०. पंचि०तिरि० अपज०-मणु०अपज० सम्म० उक० पदे०संका० सम्मामि० णिय० तं तु विट्ठाणपदिदं अणंतभागही. असंखे०भागहीणं वा । सोलसक०णवणोक० णिय० अणु० असंखे०भागही० । एवं सम्मामि० ।
हीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है। इसी प्रकार सम्यग्मिध्यात्वकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। सम्यक्त्वके उत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक जीव सम्यग्मिथ्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके नियमसे असंख्यातगुणे हीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है।
६१४८. अनन्तानुबन्धी क्रोधके उत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक जीव मिथ्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वके नियमसे असंख्यातगुणे हीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है। पन्द्रह कषाय और छह नोकषायोंके उत्कृष्ट प्रदेशोंका भी संक्रामक होता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका भी संक्रामक होता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है तो नियमसे कदाचित् अनन्तभागहीन और कदाचित् असंख्यातभागहीन इन द्विस्थान पतित अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है । तीन वेदोंका नियमसे असंख्यात भागहोन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है। इसी प्रकार पन्द्रह कषाय और छह नोकषायोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। ___ . ६१४६. स्त्रीवेदके उत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक जीव सोलह कषाय और आठ नोकषायोंके नियमसे असंख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है। मिथ्यात्क और सम्यग्मिथ्यात्वके नियमसे असंख्यातगुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है। इसी प्रकार पुरुषवेद और नपुंसकवेदकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए । यह सामान्य नारकियोंमें जो सन्निकर्ष कहा है इसी प्रकार सब नारकी, तिर्यञ्च, पञ्चेन्द्रियतिर्यश्चत्रिक, सामान्यदेव और भवनवासियोंसे लेकर नौ प्रवेयक तकके देवोंमें जानना चाहिए।
६ १५०. पञ्चेन्द्रिय तिर्थञ्च अपर्याप्त और मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सम्यक्त्वके उत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक जीव सम्यग्मिथ्यात्वका नियमसे संक्रामक होता है । जो उत्कृष्ट प्रदेशोंका भी संक्रामक होता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका भी संक्रामक होता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है तो नियमसे अनन्तभागहीन या असंख्यातभागहीन द्विस्थानपतित अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है। सोलह कपाय और नौ नोकषायोंके असंख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्र इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए।
३१