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जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६
६१५१. अनंतापु० कोध० उक० पदे० संका० पण्णा रसक० छण्णोक० णिय ० तंतु विद्वाणपद • अनंतभागही ० असंखे ० भागही ० । तिन्हं वेदाणं णिय० असंखे ० भागही ० । एवं पण्णारसक०० छण्णोकसायाणं ।
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अणुक०
६१५२. इथिवे ० उक० असंखे ० भागही ० । एवं णवंस० अणुक्क० असंखे० ।
२४२
पदे ० संका० सोलसक० अट्टणोक० णिय ० एवं पुरिसवे ० । णवरि सम्म० सम्मामि० णिय ०
अणुक०
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९ १५३. मणुसतिए ओघं । णवरि मणुसिणी - इत्थिवे ० उक० पदेससंका ० णवंस •
णत्थि ।
१५४. अदिसादि सव्वट्टा ति मिच्छ० उक्क० पदे ० संका ० सम्मामि० निय० तं तु विद्वाणपदि • अनंतभागही ० असंखे ० भागही ० वा । सोलसक० णवणोक०णिय ० अ० असंखे० गुणही ० । एवं सम्मामि० ।
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१५५. अनंताकोध० उक्क० पदे० संका० मिच्छ० सम्मा मि० तिष्णिवे ० णिय० अणुक्क० असंखे ० भागही ० । पण्णा रसक० छण्णोक० णिय० तं तु विट्ठाणपदि ०
६ १५१. अनन्तानुबन्धी क्रोधके उत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक जीव पन्द्रह कषाय और छह नोकषायका नियमसे संक्रामक होता है जो उत्कृष्ट प्रदेशोंका भी संक्रामक होता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका भी संक्रामक होता है । यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है तो नियमसे अनन्तभागहीन या श्रसंख्यातभागहीन द्विस्थानपतित अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है । तीन वेदोंके नियमसे श्रसंख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है। इसी प्रकार पन्द्रह कषाय और छह नोकषायोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए ।
६ १५२. स्त्रीवेदके उत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक जीव सोलह कषाय और आठ नोकषायों के नियम से असंख्यात भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है। इसी प्रकार नपुंसकवेदकी मुख्यता से सन्निकर्ष जानना चाहिए। तथा इसी प्रकार पुरुषवेदकी मुख्यता से सन्निकर्ष जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्व के नियमसे असंख्यातगुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है ।
९ १५३. मनुष्यत्रिक श्रोघके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि मनुष्यिनियोंमें स्त्रीवेदके उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवके नपुंसकवेद नहीं है ।
१५४. अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेशों संक्रामक जीव सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेशोंका भी संक्रामक होता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका भी संक्रामक होता है । यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशोका संक्रामक होता है तो नियमसे अनन्तभागहीन या असंख्यात भागहीन द्विस्थानपतित अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है । सोलह कषाय और नौ नोकपायोंके नियमसे असंख्यातगुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्व की मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए ।
$ १५५. अनन्तानुबन्धी क्रोधके उत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक जीव मिध्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व और तीन वेदोंके नियमसे असंख्यात भागद्दीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है । पन्द्रह कषाय