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जयधवला सहिदे कसायपाहुडे
[ ब्धगो ६
गुणं । सेत्थि । माणसंज० उक्क० पदे ० संका० । मायासंजल० णिय० अणु० असंखे० गुणहीणं । सेसं णत्थि । मायासंज० उक० पदे० संका० सव्वेत्तिमसंकामगो । लोभसंज ० उक्क० पदेससंका ० तिणिसंज० - णत्रणोक० णिय० अणु० असंखे० गुणहीणं । सेत्थि ।
९ १४५. इत्थवे ० उक्क० पदे० संका० तिण्णिसंज० सत्तणोक० णियमा अणु० असंखे ०गुणहीणं । णवंस० सिया अत्थि सिया णत्थि । जदि अत्थि णिय० अणु० असंखे० भागहीणं । णत्रुंस० उक० पदे० संका० तिष्गिसंज० अटुगोक० णिय अणु० असंखे०गुणहीणं । पुरिसवे० उक० पदे० संका० तिण्गिसंजल० णिय० अणुक० असंखे० गुणही ० छण्गोक०, णिय अणुक० असंखे ० भागहीणं ।
$ १४६. हस्सस्स उक० पदे० संका० पंचणोक० गिय० तं तु बिट्ठाणपडि ० अनंतभागही • असंखे ० भागही ०, पुरिसवे० णिय० अणुक० असंखे० भागही ०, तिह संजल • पिय० अणुक० असंखे०, गुणहीणं । एवं पंचणोक० ।
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S १४७. आदेसेण रइय० मिच्छ० उक्क० पदे०संका ० सम्मामि० णिय ० उकस्सं । सोलसक० - णवणोक० पिय० अणुक० असंखे०गुणहीणं, एवं सम्मामि० सम्म ०
गुणे हीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है । इसके शेष प्रकृति अर्थात् संज्वलन लोभका संक्रम नहीं है । मानसंज्वलन के उत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक जीव मायासंज्वलनके नियमसे असंख्यातगुणे हीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है। इसके शेष अर्थात् लोभसंज्वलनका संक्रम नहीं है । मायासंज्वलन के उत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक जीव सबका असंक्रामक होता है । लोभसंज्वलन के उत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक जीव तीन संज्वलन और नौ नोकषायोंके नियमसे असंख्यातगुणे हीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है। इसके शेष प्रकृतियोंका सत्त्व नहीं है ।
९ १४५. स्त्रीवेदके उत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक जीव तीन संज्वलन और सात नोकषायोंके नियमसे श्रसंख्यातगुणे हीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है। इस जीव के नपुंसकवेदका सत्त्व कदाचित् कदाचि नहीं है । यदि है तो नियमसे असंख्यातगुणे हीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक हाता है । नपुंसक वेद के उत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक जीव तीन संज्वलन और आठ नोकषायों के नियमसे असंख्यातगुणे हीन अनुत्कृ प्रदेशका संक्रामक होता है । पुरुषवेदके उत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक जीव तीन संन्वलनके नियमसे असंख्यातगुणे हीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है । छह नोकषायों के नियमसे असख्यात भागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है ।
§ १४६.हास्यके उत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक जीव पाँच नोकषायोंके उत्कृष्ट प्रदेशोंका भी संक्रामक होता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका भी संक्रामक होता है। यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है। तो नियमसे कदाचित् अनन्तभागहीन और कदाचित् श्रसंख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है । पुरुषवेदके नियमसे असंख्यातभागहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है । तीन संज्वलनोंके नियमसे असंख्यातगुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है। इसी प्रकार पाँच नोकषायोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए।
१४७. देशसे नारकियोंमें मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक जीव सम्यग्मिथ्यात्व के नियमसे उत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है। सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके नियमसे असंख्यातगुणे