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________________ गा० ५८] उत्तरपयडिपदेससंकमे सण्णियासो २३६ पदे०संका० सम्मामि०-बारसक०-णवणोक० णियमा अणुक्क० असंखे०गुणहीणं । णवरि सुत्ताहिप्पाएण लोहसंजलणं विसेसहीणं । एसो अत्यो उवरि वि जहासंभवमणुगंतव्यो । सम्म०-असंकामय० अणंताणुबंधी णत्थि । एवं सम्मामि० । णारि मिच्छ० णत्थि । सम्म० उक्क० पदे०संका० सम्मामि०-सोलसक० णवणोक० णियमा अणुक० असंखे०गुणहीणं मिच्छ० असंकाम। १४२. अणंताणु०कोध० उक्क० पदे०संका० मिच्छ०-सम्मामि० बारसक०. णवणोक० णियमा अणुक० असंखेन्गुणहीणं । तिण्हं कसायाणं णिय० तं तुविट्ठाणपदिदं अणंतभागहीणं वा असंखे० भागहीणं वा । सम्म० असंका० । एवं तिहं कसायाणं । ६१४३. अपच्चक्खाण-कोध० उक्क० पदे०संका० चदुसंज०-णवणोक० णियमा अणुक्क० असंखेन्गुणहीणं । सत्तकसा० णिय० तं तु विट्ठाणपदि० अणंतमागहो० असंखे०भागहीणं वा । सेसं णस्थि । एवं सत्तकसायाणं । ६१४४. कोहसंज० उक० पदे०संका. दोसंजल० णियमा अणु० असंखे०है-श्रोध और आदेश । ओघसे मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक जीव सम्यग्मिथ्यात्व, वारह कषाय और नौ नोकषायोंके नियमसे असंख्यातगुणे हीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है। इतनी विशेषता है कि चूर्णिसूत्रके अभिप्रायानुसार लोभसंज्वलनके विशेषहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है । यह अर्थ आगे भी यथासम्भव जानना चाहिए। वह सम्यक्त्वका असंक्रामक होता है और उसके अनन्तानुबन्धी चतुष्कका सत्त्व नहीं होता। इसी प्रकार सम्यग्मिथ्यात्वके उत्कृष्ट प्रदेशोंके संक्रामक जीवकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि उसके मिथ्यात्वका सत्त्व नहीं होता । सम्यक्त्वके उत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक जीव सम्यग्मिध्यात्व, सोलह कषाय और नौ नोकषायोंके असंख्यात गुणहीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है। वह मिथ्यात्वका असंक्रामक होता है। ६१४२. अनन्तानुबन्धी क्रोधके उत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक जीव मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व, बारह कषाय और नौ नोकषायोंके नियमसे असंख्यातगुणे हीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है। अनन्तानुक्न्धी मान आदि तीन कषायोंका नियमसे संक्रामक होता है जो उत्कृष्ट प्रदेशोंका भी संक्रामक होता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका भी संक्रामक होता है । यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है तो कदाचित् अनन्त भागहीन और कदाचित् असंख्यात भागहीन इस प्रकार द्विस्थान पतित प्रदेशोंका संक्रामक होता है । वह सम्यक्त्वका असंक्रामक होता है। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धी मान आदि तीन कषायोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। ६१४३. अप्रत्याख्यानावरण क्रोधके उत्कृष्ट प्रदेशका संक्रामक जीव चार संज्वलन और नौ नोकषायोंके नियमसे असंख्यातगणे हीन अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है। सातकषायोंका नियम से संक्रामक होता है जो उत्कृष्ट प्रदेशोंका भी संक्रामक होता है और अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका भी संक्रामक होता है । यदि अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है तो कदाचित् अनन्तभागहीन और कदाचित् असंख्यात भागहीन द्विस्थान पतित अनुत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक होता है। इसके शेष प्रकृतियोंका सत्त्व नहीं पाया जाता । इसी प्रकार सात कषायोंकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। ६ १४४. क्रोधसंज्वलनके उत्कृष्ट प्रदेशोंका संक्रामक जीव दो संज्वलनोंका नियमसे असंख्यात
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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