________________
२०७
गा० ५८]
उत्तरपयडिपदेससंकमे सामित्रों णणयवेदस्स जहणणो पदेससंकमो कस्स ? ८३. सुगमं ।
8 एइदियकम्मेण जहएणएण तसेसु आगदो तिपलिदोवमिएसु उववएणो, तिपलिदोवमे अंतोमुहुत्ते सेसे सम्मत्तमुप्पाइदं। तदो पाए सम्मत्तेण अपडिवदिदेण सागरोवमछावहिमणुपालिदेण संजमासंजमं संजमं च बहुसो लडो, चत्तारि वारे कसाए उवसामिदा । तदो सम्मामिच्छत्तं गंतूण पुणो अंतोमुहुत्तेण सम्मत्तं घेत्तूण सागरोवमछावहिमणुपालिदूण मणुसभवग्गहणे सव्वचिरं संजममणुपालिदूण खवणाए उवढिदो तस्स अधापवत्तकरणस्स चरिमसमए णqसयवेदस्स जहणणो पदेससंकमो।
८४. एदस्स सुत्तस्स अत्थपरूवणा विहत्तिसामित्ताणुसारेण परूवेयव्या। णवरि वेछोवद्विसागरोवमाणमव ाणे मिच्छत्तं गंतूण सोदएण मणुसेसुप्पण्णस्स तत्थ सामित्तं दिण्णं, अण्णहा जहण्णसोमित्तविहाणाणुववत्तीदो। एत्थ पुण मिच्छत्तमगंतूण पुरिसवेदोदएणेव खवयसेढिमारुहमाणयस्स अधापवत्तकरणचरिमसमए जहण्णसामित्तमिदि एसो विसेसो णायब्बो।
* नपुंसकवेदका जघन्य प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? ६८३. यह सूत्र सुगम है।
* जो एकेन्द्रियसम्बन्धी जघन्य सत्कर्मके साथ त्रसोंमें ओया। वहाँ तीन पल्यकी आयुवालोंमें उत्पन्न हुआ। तीन पल्यमें अन्तमुहूर्त शेष रहने पर सम्यक्त्वको उत्पन्न किया । अनन्तर वहाँसे लेकर सम्यक्त्वसे च्युत न होकर तथा छयासठ सागर काल तक उसका पालन करते हुए जिसने संयमासंयम और संयमको अनेकवार प्राप्त किया और चार बार कषायोंका उपशम किया । अनन्तर सम्यग्मिथ्यात्वको प्राप्त कर पुनः अन्तर्मुहूर्तमें सम्यक्त्वको ग्रहण कर और छयासठ सागर काल तक उसका पालनकर अन्तमें मनुष्यभवको प्राप्तकर चिरकाल तक संयमका पालन करते हुए जो क्षपणाके लिए उद्यत हुआ उसके अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समयमें नपुंसकवेदका जघन्य प्रदेशसंक्रम होता है ।
६८४. इस सूत्रके अर्यका कथन प्रदेशविभक्तिके स्वामित्वसूत्रके अनुसार करना चाहिए। इतनी विशेषता है कि दो छयासठ सागरके अन्तमें मिथ्यात्वमें जाकर स्वोदयसे मनुष्योंमें उत्पन्न हुए जीवके वहाँ पर स्वामित्व दिया है, अन्यथा जघन्य प्रदेशस्वामित्व नहीं बन सकता। किन्तु यहाँ पर मिथ्यात्वमें नहीं जाकर पुरुषवेदके उदयसे ही क्षपकश्रेणि पर आरोहण करनेवाले जीवके अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समयमें जघन्य स्वामित्व दिया है इस प्रकार दोनोंमें इतना विशेष जान लेना चाहिए।