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________________ २०८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ * एवं चेव इत्थिवेदस्स वि । णवरि तिपलिदोवमिएसु ए अच्छिदाउगो। ८५. एदस्स सुत्तस्स अत्थो सुगमो। एवमोघेण सनकम्माणं चुण्णिसुत्ताणुसारेण जहण्णसामित्तविहासणा कया । एत्तो एदेण सूदिदादेसजहण्णसामित्तविहासणट्ठमुच्चारणं बत्तइस्सामो । तं जहा * ८६. जहण्णए पयदं । दुविहो णिद्देसो । ओघो मूलगंथसिद्धो । आदेसेण णेरइय० मिच्छ० जह० पदे०संक० कस्स ? अण्णद० जो खविदकम्मंसिओ विवरीयं गंतूण दीहाए आउट्ठिदीए उववजिदूण अंतोमुत्तेण सम्मत्तं पडिवण्णो, पुणो अणंताणु०चउक्क विसंजोएदूण तत्थ भवट्ठिदिमणुपालिय से काले मिच्छत्तं गाहिदि त्ति तस्स जह० पदे०संक०। एवमित्थिणवंस०वेदाणं । सम्म०-सम्मामि० जह० पदेससंक० कस्स ? अण्णद० जो खविदकम्मंसि. विवरीदं गंतूग णेरइएसु उबवण्णो, दीहाए उत्घेल्लणद्धाए उव्वेल्लेऊण दुचरिमद्विदिखंडयस्स चरिमसमयसंकामेंतयस्स तस्स जह० पदे०संकमो। अणंताणु०चउक्क० जह० पदे०संक० कस्स ? अण्णदरो खविदकम्मंसिओ विवरीयं गंतूण णेरइएसु दीहाउद्विदिएसुववण्णो अंतोमुहुत्तं सम्मत्तं पडिवण्णो। पुणो जणंताणु०४ विसंजोएदण मिच्छत्तं गदो सव्वलहुं पुणो वि सम्मत्तं पडिवण्यो, तत्थ भवट्ठिदिमगुपालेऊण थोवावसेसे * इसी प्रकार स्त्रीवेदका भी जघन्य संक्रमस्वामित्व जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि यह तीन पल्यकी आयुवालोंमें उत्पन्न हुआ नहीं होता है। ८५. इस सूत्रका अर्थ सुगम है। इस प्रकार ओघसे चूर्णिसूत्रके अनुसार सब कर्मोंके जघन्य स्वामित्वका व्याख्यान किया । अब आगे इससे सूचित होनेवाले समस्त जघन्य स्वामित्वका व्याख्यान करनेके लिए उच्चारणाको बतलाते हैं । यथा ६८६. जघन्यका प्रकरण है । निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघ मूल प्रन्थसे सिद्ध है। आदेशसे नारकियोंमें मिथ्यात्वका जघन्य प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो अन्यतर क्षपितकर्माशिक जीव विपरीत जाकर दीर्घ आयुवाले नारकियोंमें उत्पन्न होकर सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ । पुनः अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी विसंयोजना करके और वहाँ भवस्थिति काल तक उसका पालन कर अनन्तर समयमें मिथ्यावको ग्रहण करेगा उसके जघन्य प्रदेशसंक्रम होता है। इसी प्रकार स्त्रीवेद और नपुंसकवेद के जघन्य प्रदेशसंक्रमका स्वामित्व जानना चाहिए। सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो अन्यतर क्षपितकमांशिक जीव विपरीत जाकर नारकियोंमें उत्पन्न हुआ । तथा दीर्घ उद्वेलनाकालके द्वारा सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्वात्वकी उद्वेलना करके उसके अन्तिम समयमें द्विचरम स्थितिकाण्डकका संक्रम करता है उसके उक्त प्रकृतियोंका जघन्य प्रदेशसंक्रम होता है। अनन्तानुबन्धीचतुष्कका जघन्य प्रदेशसंक्रम किसके होता है ? जो अन्यतर क्षपितकर्मा शिक जीव विपरीत जाकर दीर्घ आयुवाले नारकियोंमें उत्पन्न होकर अन्तर्मुहूर्तमें सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ। पुनः अनन्तानुबन्धीचतुष्ककी बिसंयोजना करके मिथ्यात्वमें गया। तथा फिर भी अतिशीघ्र सम्यक्त्वको प्राप्त कर वहाँ भवस्थिति काल तक उसका पालन करते हुए जीवनके थोड़ा शेष रहने पर जब मिथ्यात्वके अभिमुख होता है तब उसके
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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