________________
गा० ५८] उत्तरपयडिअणुभागसंकमे भुजगारसंकमस्स एयजीवेण अंतरं १०६
३६०. कुदो १ भुजगारुकस्सकालेणंतरिदस्स तदुवलद्धीदो । * सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमप्पयरसंकामयंतरं केवचिरं कालादो होइ? ६३६१. सुगमं ।
® जहएणुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं ।
६ ३६२. एत्थ जहणतरे विवक्खिए सम्मतस्स चरिमाणुभागखंडयकालो घेत्तव्यो । सम्मामिच्छत्तस्स तिचरिमाणुभागखंडयषदणाणंतरमप्पदरं कादूर्णतरिय दुचरिमाणुभागखंडए पादिदे लद्धमंतरं कायव्वं । दोण्हमुक्कस्संतरे इच्छिज्जमाणे पढमाणुभागखंडयघादाणंतरमप्पयरं कादूर्णतरिय विदियाणुभागखंडए णिहिदे लद्धमंतरं कायव्वं ।
ॐ अवडिदसंकामयंतरं केवचिरं कालाने होइ ? ६ ३६३. सुगमं। * जहपणेण एयसमो । ६ ३६४. अप्पयरसंकमेणेयसमयमंतरिदस्स तदुवलद्धीदो। * उकस्सेण उवड्डपोग्गलपरियहूं। ६ ३६५. पढमसम्मत्तमुप्पाइय मिच्छत्तं गंतूण सव्वलहुं उब्बेल्लणचरिमफालिं पादिय
६ ३६०. क्योंकि भुजगारपदके उत्कृष्ट कालके द्वारा अन्तरको प्राप्त हुए अवस्थितपदका उक्त अन्तरकाल उपलब्ध होता है।
* सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वके अल्पतरसंक्रामकका अन्तरकाल कितना है ? ६३६१. यह सूत्र सुगम है।। * जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है ।
६३६२. यहाँ पर जघन्य अन्तरकालके विवक्षित होनेपर सम्यक्त्वके अन्तिम अनुभागकाण्डकका काल लेना चाहिए। सम्यग्मिथ्यात्वके त्रिचरम अनुभागकाण्डकके पतनके बाद अल्पतर करके तथा उसका अन्तर करके द्विचरम अनुमागकाण्डकके पतन होने पर अन्तर प्रप्त करना चाहिए । तथा दोनों प्रकृतियोंके अल्पतरपदके उत्कृष्ट अन्तरको लानेकी इच्छा होनेपर प्रथम अनुभागकाण्डकका घात करनेके बाद अल्पतरपद तथा उसका अन्तर करके द्वितीय अनुभागकाण्डकके समाप्त होनेपर अन्तर प्राप्त करना चाहिए।
* अवस्थित संक्रामकका अन्तरकाल कितना है ? ६ ३६३. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य अन्तर एक समय है।
६४. क्योंकि अल्पतरपदके संक्रमद्वारा एक समयके लिए अन्तरको प्राप्त हुए अवस्थितपदका उक्त अन्तरकाल उपलब्ध होता है
* उत्कृष्ट अन्तर उपाधं पुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। ६ ३६५. क्योंकि प्रथम सम्यक्त्वको उत्पन्न करके और पुनः मिथ्यात्वमें जाकर अति शीघ्र