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१०८ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे
[बंधगो ६ लद्धमेदमुक्कस्संतरं वेअंतोमुहुत्ताहियतिपलिदोवमेहि सादिरेयतेवद्विसागरोवमसदमेत्तं ।
* अप्पयरसंकामयंतरं केवचिरं कालादो होइ ? ६३८५. सुगमं । * जहणणेण अंतोमुहुत्तं ।
६ ३८६. तं कधं ? दंसणमोहक्खवणाए मिच्छत्तस्स तिचरिमाणुभागखंडयचरिमफालिं पादिय तदणंतरमप्पयरसंकमं कादूर्णतरिय पुणो दुचरिमाणुभागखंडयं धादिय अप्पयरभावमुवगयम्मि लद्धमंतरं होइ ।
* उकस्सेण तेवठिसागरोवमसदं सादिरेयं । ६ ३८७. कुदो ? अवट्ठिदसंकमकालस्स पहाणभावेणेत्थ विवक्खियत्तादो।
अवडिदसंकामयंतरं केवचिरं कालादो होइ ? ६ ३८८. सुगमं। ॐ जहपणेण एयसमओ। ६३८६. भुजगारेणप्पयरेण वा एयसमयमंतरिदस्स तदुवलंभादो। * उकस्सेण अंतोमुहुत्तं ।
अन्तर दो अन्तमुहूर्त और तीन पल्य अधिक एकसौ त्रेसठ सागर प्राप्त होता है ।
* अल्पतर संक्रामकका अन्तरकाल कितना है ? ६ ३८५. यह सूत्र सुगम है। * जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। ६३८६. शंका-वह कैसे ?
समाधान—क्योंकि जो दर्शनमोहनीयकी क्षपणामें मिथ्यात्वके त्रिचरम अनुभागकाण्डककी अन्तिम फालिका पतनकर तथा उसके बाद अल्पतरसंक्रमको करनेके बाद उसका अन्तर करके पुनः द्विचरमानुभागकाण्डकका घात करके अल्पतरपदको प्राप्त हुआ है उसके मिथ्यात्वके अल्पतरपदका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त प्राप्त होता है।
* उत्कृष्ट अन्तर साधिक एकसौ त्रेसठ सागर है । ६ ३८७. क्योंकि इसके अन्तररूपसे यहाँ पर अवस्थितसंक्रमका काल प्रधानरूपसे विवक्षित है । * अवस्थितसंक्रामकका अन्तरकाल कितना है ? ६३८८. यह सूत्र सुगम है।
* जघन्य अन्तर एक समय है ।
६३८६. क्योंकि भुजगार या अल्पतरपदके द्वारा एक समयके लिए अन्तरको प्राप्त हुए अवस्थितपदका उक्त अन्तरकाल उपलब्ध होता है।
* उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूत है।