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________________ ६४ जयधवलासहिदे कसायपाहुडे [बंधगो ६ अपच्चक्खाणमाण० जह० अणंतगुणो । कोधस्स जह. विसे० । मायाए जह० विसे० । लोभ० जह० विसे० । पच्चक्खाणमाण० जह० अणंतगुणो। कोध० जह० विसे० । मायाए जह० विसे० । लोभ० जह• विसे । माणसंज० अणंतगुणो। कोध० विसे० । माया० विसे । लोभ० विसे० । अणंताणु०माण० जहण्णाणु०सं० अणंतगुणो। कोह. विसे । मायाए० विसेसा० । लोह. विसे । मिच्छत्तस्स जह० अणंतगणो ति एवमेदीए दिसाए सेसमग्गणासु वि अप्पाबहुअं जाणिय कायव्यं । ___ एवमप्पाबहुए समत्ते चउवीसमणिओगद्दाराणि समत्ताणि । ॐ भुजगारे त्ति तेरस अणिोगहाराणि। ६ ३३१. चउवीसमणियोगद्दारेसु परूविय समत्तेसु किमट्ठमेसो भुजगारसण्णिदो अहियारो समागओ?वुच्चदे–जहएणुकस्सभेयभिण्णाणुभागसंकमस्स सगंतोभाविदाजहण्णाणुकस्स वियप्पस्स अवत्थाभेयपदुप्पायणढमागओ, तदवत्थाभूदभुजगारादिपदाणमेत्य समुकित्तणादितेरसाणियोगद्दारेहि विसेसिऊण परूवणोवलंभादो। ॐ तत्थ अट्ठपदं। अनुभागसंक्रम अनन्तगुण है। उससे अप्रत्याख्यानक्रोधका जघन्य अनुभागसंक्रम विशेष अधिक है। उससे अप्रत्याख्यानमायाका जघन्य अनुमागसंक्रम विशेष अधिक है। उससे अप्रत्यानलोभका जघन्य अनुभागसंक्रम विशेष अधिक है। उससे प्रत्याख्यानमानका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है। उससे प्रत्याख्यानक्रोधका जघन्य अनुभागसंक्रम विशेष अधिक है। उससे प्रत्याख्यानमायाका जघन्य अनुभागसंक्रम विशेष अधिक है। उससे प्रत्याख्यान लोभका जघन्य अनुभागसंक्रम विशेष अधिक है। उससे मानसंज्वलनका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है। उससे क्रोधसंज्वलनका जघन्य अनुभागसंक्रम विशेष अधिक है। उससे मायासंज्वलनका जघन्य अनुभागसंक्रम विशेष अधिक है। उससे लोभसंज्वलनका जघन्य अनुभागसंक्रम विशेष अधिक है। उससे अनन्तानुबन्धीमानका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुणा है। उससे अनन्तानुबन्धी क्रोधका जघन्य अनुभागसंक्रम विशेष अधिक है। उससे अनन्तानुबन्धी मायाका जघन्य अनुभागसंक्रम विशेष अधिक है। उससे अनन्तानुबन्धी लोभका जघन्य अनुभागसंक्रम विशेष अधिक है । उससे मिथ्यात्वका जघन्य अनुभागसंक्रम अनन्तगुण है। इस प्रकार इस दिशासे शेष मार्गणाओंमें भी अल्पबहुत्व जानकर करना चाहिए। इस प्रकार अल्पबहुत्वके समाप्त होने पर चौदह अनुयोगद्वार समाप्त हुए। * भुजगार अधिकारका प्रकरण है। उसमें तेरह अनुयोगद्धार होते हैं। ६३३१. चौबीस अनुयोगद्वारोंका कथन समाप्त होने पर यह मुजगार संज्ञावाला अधिकार किसलिए आया है ? कहते हैं-जिसके भीतर अजघन्य और अनुत्कृष्ट भेद गर्भित हैं ऐसे जघन्य और उत्कृष्टके भेदसे दो प्रकारके अनुभाग संक्रमके अवस्थाभेदोंका कथन करनेके लिए यह अधिकार आया है, क्योंकि उसके अवस्थारूप भुजगार आदि पदोंका यहाँ पर समुत्कीर्तना आदि तेरह अनुयोगद्वारोंके आश्रयसे पृथक पृथक् कथन उपलब्ध होता है। * उस विषयमें यह अर्थपद है।
SR No.090221
Book TitleKasaypahudam Part 09
Original Sutra AuthorGundharacharya
AuthorFulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatvarshiya Digambar Jain Sangh
Publication Year2000
Total Pages590
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Religion
File Size19 MB
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