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________________ शंका ६ और उसका समाधान ચક पर्यायें हैं उनके होने में कुम्भकार आदिको निमित्तता तो है ही और वे घटके प्रागभावरूप हैं । अतएव आचार्य महाराज कुम्भकारादिमें निमित्तमात्रताको सिद्ध करने के लिए अन्योन्याभावको ध्यान में रखकर उदाहरण प्रस्तुत कर रहे है । बालु बहुल मिट्टोका पिण्ड यद्यपि द्रव्यदृष्टिसे घटरूप होनेकी योग्यता रखता है, क्योंकि जैसा दूसरा मिट्टीकर पिण्ड है वैसा ही यह भी मिट्टीका पिण्ड है, परन्तु बालुकात्रहुल मिट्टी के निण्डमें घट होनेकी पर्याय योग्यता नहीं है और यही कारण है कि भट्टाकलंकदेवने बाह्य सामग्री में स्पष्टरू से निमित्तमात्राको सूचित करने के लिए बालुबहु मिट्टी के पिण्डको उदाहरण बनाया है। वे इस उदाहरणद्वारा यह सिद्ध कर रहे हैं कि यदि उपादानगत योग्यता के रहने पर केवल बाह्य सामग्रीके बलसे घटादि कार्यो की उत्पत्ति मानी जाय तो बालुका बहुल मिट्टी में भी बाह्य सामग्री के बलसे घटको उत्पत्ति हो जानी चाहिए । किन्तु ऐसा नहीं होता | इससे स्पष्ट विदित होता है कि प्रत्येक कार्यमें बाह्य सामग्री निमित्तमात्र है । ष्ट कि इस उल्लेख द्वारा बाचार्य महाराज यही सूचित कर रहे हैं कि जब प्रत्येक द्रar frit विवक्षित कार्यकी अनन्तर पूर्व पर्यायी भूमिका में आता है तभी वह उस कार्यका उपादान बनता है । व्यवहारनयसे बाह्य सामग्री में कारणता स्वीकार को जाय यह दूसरी बात है, परन्तु निश्चयनयसे तो स्वयं मिट्टी भीतरसे घट भवन के सम्मुख होकर घटती है विवाद किया जाय तो स्वयं घर अपने अवयवोंसे निष्पन्न होता है, अन्य किसीसे नहीं यह सुनिश्चित है। इस तथ्यको ध्यान में रखकर भट्टाकलंकदेव तत्वार्थवार्तिक अध्याय १ सूत्र ३३ में ऋजुसूत्रनयको अपेक्षा विवेचन करते हुए लिखते है -- कुम्भपर्यायसमये च स्वावयवेभ्यः एव निर्वृतेः । · और घट पर्याय समय में घट अपने अवयवोंसे हो निवृत्त होता है । इसी प्रसंग में अपर पक्षने उपादानकारणका विचार करते हुए जो अन्तमें मिट्टोको घटका उपादानकारण बतलाया है और साथ ही कालको उदाहरणरूप में प्रस्तुत करके जो घड़ी, घंटा, दिन, सप्ताह, पक्ष, मास और वर्ष आदिको वास्तविक सिद्ध करनेका प्रयत्न किया है सो इस सम्बन्ध निवेदन यह है कि आगम में व्यवहार कथन और निश्वय कथन इस तरह दोनों प्रकारसे विवेचन दृष्टिगोचर होता है। उनसे जो निश्चय कथन है वह यथार्थ है और जो व्यवहार कथन है वह उपचरित है। मिट्टोको घटका उपादान कहा जाय । इतना ही क्यों ? यदि कोई गुद्गकको घटका उपादान कहना चाहता है तो इसमें हमें आपत्ति नहीं। किन्तु जब उपचरित और अनुप बरितको दृष्टिसे विचार किया जाता है तब निश्चयसे घटके अध्यवहित पूर्वपर्याय युक्त मिट्टी हो घटका उपादान कारण होगी, अन्य नहीं । हो, यदि व्यवहारनयका अवलम्बन लेकर योग्यताको दृष्टिसे विचार किया जाता है तो मिट्टी तो घटका उपादान कहलायेगी ही और वह मिट्टी भी घटका उपादान कहलायेगी जो बालुकाल है । इतना ही क्यों वे सब पुद्गल घटके उपादान कहलायेंगे जो घटक योग्यतासे सम्पन्न हैं । यही बात कालके विषय में भी जान लेनी चाहिए। समय यह काल की पर्याय है। जैसे जीत्रकी एक समयको पर्याय क्रोध या क्षमारूप होती है वैसे ही समय भी कालको एक पर्याय है। यह वास्तविक है, किन्तु उसके बाद जो निमिष, घड़ी, घंटा, दिन, सप्ताह और पक्ष आदिका व्यवहार होता है वह उपचरित है । यह इससे स्पष्ट है कि भारतीय परम्परामें कोई पक्ष १४ दिनका होता है और कोई पक्ष १६ दिनका भी । इसी प्रकार लगभग ढाई वर्ष निकल जानेके बाद अधिकमास आता है और कभी-कभी क्षयमाल भी आता है | पश्चिमीय सम्पता में प्रत्येक वर्षका फरवरी २९ दिनका होता है । अब राष्ट्रीय पञ्चाङ्गकी व्यवस्था बनी है । उनके अनुसार कालगणनाको कोई सरल पति सोचो गई है । सो ये सब स्वयं वास्तविक तो नहीं ५८
SR No.090218
Book TitleJaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Questions and Answers
File Size12 MB
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