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प्रथम दौर
शंका १५ जब अभाव चतुष्टय वस्तुस्वरूप हैं (भवस्यभावोऽपि च वस्तुधमः) तो वे काय व कारणरूप क्यों नहीं माने जा सकते । तदनुसार घातिया कर्मोका ध्वंस केवलनानको क्यों उत्पन्न नहीं करता ?
समाधान १ इसमें सन्देह नहीं कि जैन आगममें चारों प्रकारके अभावों को भावान्तर स्वभाव स्वीकार किया है। किन्तु प्रकृत मे चार धातिकमों के त्रसका अर्थ भावान्तर स्वभान करनेपर कर्मके वसाभावरूप अकर्म पर्यायको केवलज्ञानको उत्पत्तिका निमित्त स्वीकार करना पड़ेगा। जिसका निमित्तरूपसे निर्देश आगममें दृष्टिगोचर नहीं होता, अतः इससे यही फलित होता है कि पूर्वमें जो ज्ञातावरणीयरूप कर्मपर्याय अज्ञानभावको उत्पत्तिका निमित्त थी उस निमित्तका अभाव होनेसे अर्थात उसके अकर्मरूप परिणम जानेसे अज्ञानभावके निमित्तका प्रभाव हो गया और उसका अभाव होनसे नैमित्तिक अज्ञान पर्यायका भी अभाव हो गया और केवलज्ञान स्वभावसे प्रगट हो गया ।
द्वितीय दौर
प्रतिशंका १५ प्रश्न था-जय अभावचतुष्टय वस्तुस्वरूप हैं (भवत्यभावोऽपि च वस्तुधमः) तो वे कार्य व कारणरूप क्यों नहीं माने जा सकते ? तदनुसार घातिया कौंका ध्वंस केवलज्ञानको क्यों मुत्पन्न नहीं करता?
प्रतिशंका २ वस्तुस्थिति यह है कि जनागम अभावको भावान्तररूप स्वीकृत किया गया है, इसलिये घातिया कर्मोक क्षय (ध्वंस) को पुद्गलकी अकर्म पर्यायके रूप में स्वीकृत किया जाता है। चूंकि घातिया कर्मोको कर्म