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________________ शंका १३ और उसका समाधान ६६७ अर्थ-को योयो सम्यक्त्व क घरता संता देव तथा गुरु विर्षे भक्तियुक्त है. बहुरि साधर्मों संयाभ्यां में अनुरक्त है सोई योगो ध्यानमै रत होय है। निम्नलिखित गाथाएँ आमार्य कुन्दबुन्द विरचित थी रयणसारकी है : भयवसणमलविवज्जियसंसारसरीरभीगणिचिणी। अवगुणं यसमगमो दंसणसुद्धो दु पंचगुरुभत्तो ।।५।। अर्थ :--मय व व्यसनके गलसे रहित और संसार शरीर-भोगोंसे विरक्त पंचपरमेष्ठीका भक्त अष्टगुणांगसे पूर्ण सम्यग्दर्शन शुद्ध होता है । देवगरूसमयभत्ता संसारसरीरभोयपरिचता । स्यणत्तयसंजुसा ते मणुवा सिवसु पत्ता ।।९।। अर्थ-देव-गुरु-शास्त्र भक्त, संसार-शरीर-भोगस विरक्त और रत्नत्रय सहित मनुष्य हो शिवमुखको प्राप्त करता है। दाणं पूजा सीलं उपवासं बहुविहं पि रखवणं पि । सम्मजुदं मोक्षसुहं सम्म विण दीहसंसारे ॥१०॥ अर्य--दान, पूजा, शील, उपत्रास और बहु प्रकार क्षमादि भी, यदि सम्यक्त्व सहिन है तो मोक्ष सुखके कारण है, यदि सम्यक्त्व रहित हैं तो दोघं संसारके कारण है। जिणपूजा मुणिदाणं करेइ जो देह सत्तिरूवेण । सम्माइट्ठी सावयधम्मी सो होइ मोक्रसमग्गरो ।।१३।। अर्थ-जो शक्तिपूर्वक जिनपूजा करता है और मुनियों को दान देता है, वह सम्यग्दृष्टि श्रादकधर्मी मोक्षमार्गरत होता है। पूया (य) फलेण तिलोए सुरपुज्जो हवेइ सुद्धमणो । दाणफलेण तिलोए सारसुह मुंजदे णियदं ॥१४|| शुद्ध मनवाला पुरुष पूजाके फलसे नीन लोकमें देवोंकर पूज्य होता है और दानके फल से नियमपूर्वक तीन लोकमें सारसुख (मोक्ष सुन) भोगता है। निम्नलिखित गाथाएं आचार्य श्री कुन्दकुन्दकृत श्री मूलाचारकी है : अरहसणमोकारं भाषेण य जी करेदि पनडमदी। सो सबबुक्खमोक्रवं पावदि अचिरेण कालेण ॥६॥ अर्थ – भक्सिसे एकाग्रचित्त होकर जो अरहन्तको नमस्कार करता है वह अति शीघ्र ही सम्पूर्ण दुःखोंसे मुक्त होता है। श्रो धवल पुस्तक १ पृ० १ पर यही गाया प्रमाणरूपसे दो गई है। इसी प्रकार माथा : में सिद्ध नमस्कारसे, गाथा १२ में आचार्य नमस्कारसे, माथा १४ में उपध्याय नमस्कारसे, और गाथा १६ में साधु नमस्कारसे सम्पूर्ण दुःखोंसे मुक्त होना कहा है। एवं गुणजुन्ताणं पंचगुरुणं विशुद्ध करणेहिं । जो कुणदि णमोक्कारं सो पाच दि णिन्वुदि सिग्धं ॥१७॥
SR No.090218
Book TitleJaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Questions and Answers
File Size12 MB
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