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________________ ६६६ जयपुर (खानिया ) तत्वचर्चा श्री अमृत उपर्युक्त इसी बात को श्रीमान् पं० फूलचन्द्रने स्वयं इन शब्दोंद्वारा स्वीकार किया है— कहीं-कहीं शुमक्रियाको धर्म कहा जाता है। माना कि यह कथन उपचारमात्र है । पर कहीं-कहीं उपचार कथन भी ग्राह्म होता है। कारण कि शुभक्रियामें हिंसादि अशुभ क्रियाओंकी निवृत्ति छिपी के लिए जीवको यद्यपि अशुभ और शुभ दोनों प्रकारकी क्रियाओंसे निवृत्त होना है, किन्तु प्रागवस्था में अशुभसे निवृत्ति भी प्राय मानी गई है। यही कारण है कि ग्रन्थकारने धर्मके स्वरूपका विवेचन करते हुए हिंसा आदि अशुभ क्रियाओंके त्यागकी भी धर्म कहा है। - पंचाध्यायी पृ० २६७, वर्णी ग्रन्थमाला श्री समयसार गाथा १४५ की टीका में भी जीवके शुभभावको मोक्षमार्ग बतलाया है, जिसका उद्धरण हम दूसरे प्रपत्र में दे चुके हैं। परन्तु आपने उसपर यह आपत्ति उठाई हूँ कि 'टोकाके अर्थ करने पर्या हुआ है। अतः पंडितप्रवर जयचन्दजीकृत तथा अहिंसा मंदिर, दिल्ली से प्रकाशित अर्थ नीचे दिये जाते हैं-'शुभ अथवा अशुभ मोक्षका और अन्धका मार्ग ये दोनों जुड़े हैं। कंवल जीवमय तो मोक्षका मार्ग हैं और केवल पुद्गलमय बन्धका मार्ग है । - पं० श्री जयचन्द्रजी शुभ अथवा अशुभ मोक्षका और बन्धका मार्ग 'ये दोनों पृथक है, केवल जीवमय तो मोक्षका मार्ग हैं और केवल पुद्गलमय बन्धका मार्ग है । - दिल्ली से प्रकाशित श्री समयसार के उपरोक्त स्पष्ट प्रमाण वहारधर्मको मोक्षमार्ग सिद्ध करते हैं। इस सम्बन्ध में श्री वल, जयधवल आदिक ग्रन्थोंके प्रमाण द्वितीय पत्रिका में दिये जा चुके हैं। अब आगे कुछ अन्य प्रमाण भो दिये जाते हैं : तं देवदेवदेवं अदिवरवसह गुरू तिलोयस्स | पणमंत जे मणुस्सा ते सोक्खं अवश्य जंति | - श्री प्रवचनसार गाधा ७९ के बाद श्री जयसेन टीका में दी गई है । अर्थ – उन देवाधिदेव, यतिवरवृषभ त्रिलोक गुरुको जो मनुष्य नमस्कार करता है वह अक्षय (मोक्ष) सुखको प्राप्त करता है। देवगुरूणं भत्ता गिरवेयपरंपरा विचितिता । झारा सुचरिता ते गहिया मोश्खमग्गमि ॥ ८० ॥ -- मोक्षप हुड अर्थ — जो देव गुरुके भक्त हैं, निर्वेद कहिये संमार-देहू -भोगते त्रिरागता की परंपराक्को तिन करे हैं, ध्यान विषे रत हैं, बहुरि सुचारिकवाले हैं, ते मोक्षमार्ग दि ग्रहण किये हैं । देवगुरुम्मिय भत्तो साहम्मिय संजुदेसु अणुरतो । सम्मत्तमुखहंतो ज्ञाणरओ होद जोई सो || ५२|| - मोक्ष पाहुड
SR No.090218
Book TitleJaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Questions and Answers
File Size12 MB
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