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________________ शंका ११ और उसका समाधान इसका भी निराकरण हो जाता है कि निमित्तता उपादानताके पोछे-पीछे चलनेवाली वस्तु है तथा इसका भी निराकरण हो जाता है कि निमितताको उपादानता समुस्खन करती है, और यह सिद्ध होता है कि जिस प्रकार अगुरुलघु गुणोंसे वस्तुम होनेवाले षड्गुणहानि-वृद्धिरूप परिणमनोंकी स्वप्रत्ययता अर्थात स्वनिमित्तक कार्यपना द्रव्यगत स्वभाव है उसी प्रकार वस्तुके जो भो अन्तरंग ( उपादान ) और बहिरंग (निमित्त) कारणों के सहयोगसे परिणमन हुआ करते है नमें पाशी जानेनानीला मरदार निमित्तक-कार्यपन भी द्रव्यगत स्वभाव ही है। मान के परिणमन ही ऐसे है या उनका स्वभाव ही ऐसा है कि स्व ( उपादान ) और पर ( निमिस ) का परस्पर सहयोग हुए बिना वे कभी उत्पन्न ही नहीं हो सकते हैं। समयमारकी आचार्य अमृतचन्द्रकृत आत्मख्याति टीकामं निम्नलिखित कलश पद्य पाया जाता है न जातु रामादिनिमित्तभावमारमात्मनो याति यथाककान्तः । सस्मिन्निमित्तं परसंग एवं वस्तुस्वभावोऽयमुदेति तावत् ॥१७५॥ इस पद्यमें पठित 'वस्तुस्वभावः' पद भी इसी अर्थका प्रकाशन कर रहा है कि परके सम्बन्धसे ही आत्मा रागादि उत्पन्न हो सकते है, ऐसा ही वस्तुस्वभाव है। आप्तपरीक्षा आचार्य श्री विद्यानन्दोने लिखा हैसामग्री जनिका कार्यस्य नैक कारणम्, ततस्तदन्यध्यतिरेकावेव कार्यस्यान्वेषणीयो। -धीरसेवामंदिर प्रकाशन पृ० ४५ अर्थ-काकी जनक सामग्री ( कारणों को समग्रता) होती है, एक कारण कार्यका जनक नहीं होता है, इसलिये 'सम्पूर्ण कारणों के अन्वय और व्यतिरेकका अन्वेषण करना चाहिये। यद्यपि यह वाक्य माशर्यने नैयायिककी ओरसे पूर्वपक्षके रूपमें उपस्थित किया है, परन्तु पूर्वपक्षको समाप्ति पर 'सत्यमतत्' पद द्वारा इसे स्वीकृत कर लिया है । आगे पु० ४५ पर लिखा है प्रत्येक सामध्येकदंशानो कार्योत्पत्तौ अन्वयव्यतिरेकनिश्चयस्य प्रेक्षापूर्वकारिभिः अन्वेषणात् । अर्थ-प्रेक्षापूर्वकारी ( बुद्धिपूर्वक कार्य करनेवाले ) लोग कार्यको उत्पति में संपूर्ण कारणोंके अलगअलग अन्वय ध्यतिरेककी खोज किया करते है।। बात भी दरअसल ऐसी है कि यदि लोकमें कोई कार्य गड़बड़ो में पड़ जाता है तो पतुर जानकार उसके प्रत्येक साधनकी और दृष्टि डालता है कि किस साधनकी गड़बड़ोसे यह कार्य गड़बड़ हो गया । पटको बनानेबाला जुलाहा पटनिर्माणके साधनभूत तन्त, तुरी, बेम, शलाका आदि सभी साधनों पर समानरूपसे दृष्टि रखता है कि सब साधनोंकी स्थिति अच्छी है या नहीं. अथवा यह भी देखता है कि इनमसे किसी साधन की कमी तो नहीं है । सर्वसाधारण लोग भी किसो कार्यके करनेसे पहले उसके कारणों पर यथाबुद्धि दृष्टि डाल लिया करते हैं। ___कहाँ तक इस विषयको बढ़ाया जाय, प्रत्येक मनुष्य यहां तक कि ओ निमित्तकारणको अवास्तविक, उपचरित या काल्पनिक सिद्ध करने में लगे हुए हैं वे भी अपने अनुभव और अपनी प्रवृत्तियोंकी ओर भो घोड़ा दृष्टिपात करें तो उन्हें मालूम होगा कि वे निमित्त उपादान दोनोंको ही समला पर बिठलाकर कार्योत्पत्तिके प्रति अग्रसर होते है । वे जानते हैं कि उनका कार्य निमित्तोंका सहारा लिये बिना नहीं सम्पन्न हो सकता है, इसलिये निमित्तोंको अपनाते हैं, फिर भी उन्हें अवास्तविक या काल्पनिक कहनेसे नहीं चुकतं, यह महान आश्चर्यको बात है।
SR No.090218
Book TitleJaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Questions and Answers
File Size12 MB
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