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________________ प्रथम दौर : १: शंका ११ परिणम के स्वप्रत्यय और स्वपरप्रत्यय दो भेद हैं, उनमें वास्तविक अन्तर क्या है ? समाधान १ सब द्रव्यों को स्वभाव पर्यायें स्वप्रत्यय होती है तथा जीव और पुद्गलकी विभाषपर्यायें स्वन्परप्रत्यय होती हैं। यहाँ स्वप्रत्यय पद द्वारा उसी द्रव्यकी उपादान दशक्ति लो गई हैं और स्व-परप्रत्यय पद द्वारा विविक्षित द्रव्यकी उपादान शक्ति के साथ उस उस पर्यायके कर्ता ओर करणरूप निमित्तों का ग्रहण किया गया है । इस दृष्टिसे स्वभाव पर्याय और विभाव के कारणोंका निर्देश करते हुए प्रवचनसार गाथा १३ की टीका में कहा भी है सोऽपि द्विविधः -- स्वभावपर्यायी विभावपर्यात्रश्च । तत्र स्वभावपर्यायो नाम समस्तद्रव्याणामामीयात्मीयागुरुलघुगुणद्वारेण प्रतिसमयसमुदीयमान पदस्थानपतितवृद्धि हानिनानाश्वानुभूतिः । विभावपर्याय नाम रूपादीनां ज्ञानादीनां वा स्व-परप्रत्ययप्रवर्तमानपूर्वोत्तराव स्थावतीर्णतारतम्योपदर्शितस्वभावविशेषानेकरवापत्तिः । वह भी दो प्रकार है-स्वभायपर्याय और विभावपर्याय। उसमें समस्त द्रव्योंको अपने-अपने अगुरुलघुगुणद्वारा प्रतिसमय प्रगट होनेवाली षट्स्थानपतित हानि-दुद्धिरूप अनेकत्वको अनुभूति स्वभावपर्याय है । तथा रूपादिके या ज्ञानादिके स्व-परके कारण प्रवर्तमान पूर्वोत्तर अवस्था में होनेवाले तारतम्य के कारण देखने में आनेवाले स्वभावविशेषरूप अनेकत्वकी आपत्ति विभात्रपर्याय है । यहाँ इतना विशेष जानना चाहिये कि जिसप्रकार स्वपरप्रत्यय पर्यायोंकी उत्पत्तिमें कालादि द्रव्यों की विविक्षित पर्याय यथायोग्य माश्रम निमित्त होती हैं उसी प्रकार स्वप्रत्ययपर्यायों की उत्पत्ति में कालादि द्रव्योंकी विविक्षित पर्यायें यथायोग्य बाश्रय निमित्त होतो है । परन्तु उनकी दोनों स्थलोंपर कथनको अविवक्षा होने से यहाँ उनकी परिगणना नहीं की गई है । यही स्वप्रत्यय और स्व-परप्रत्यय इन दोनोंगें भेद है ।
SR No.090218
Book TitleJaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Questions and Answers
File Size12 MB
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