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________________ शंका ९ और उसका समाधान ५८१ इसकी सूरिकृत टीकामें बतलाया हैजीवस्यौपाधिकमोह-राग-द्वेषपर्यापैरेकन्वपरिणामः स कंवलजीवबन्धः । जीवका औपाधिक मोह, राग और द्वेषरूप पर्यायों के साथ जो एवात्य परिणाम है बह केवल जीव. बन्ध है। ४. बध्य-बन्धकभाव जीव और उनके रागादिभावों में किस प्रकार घटित होता है इसे स्पष्ट करते हुए आचार्य अमृतचन्द्र प्रवचनसार गाथा १७५ को टोकामै लिखते है ___ भयमारमा सर्व एव तावत्सविकल्पनिर्विकल्पपरिच्छेदात्मकवादुपयोगमयः । तन यो हि नाम नानाकारान् परिच्छेधानानासान मोह वा राग वा द्वेष वा समुपैति स नाम सेः परप्रत्ययैरपि मोहरागद्वेषरुपरमात्मस्वभावत्वासीलपीतरतीपाश्रयमध्ययनीलपीतरकत्वैरुग्दनस्वभावः स्फटिकमणिरिव स्वयमक एवं तद्भावद्वितीयस्वान्धो भवति । प्रथम तो यह आत्मा सर्व ही उपयोगमय है, क्योंकि वह सविकल्प और निविकल्प प्रतिभासस्वरूप है। उममें जो आत्मा विविधाकार प्रतिभासित होनेवाले पदार्थों को प्राप्त करके मोह, राय अथवा द्वेष करता है बह नील, पीत मोर रक्त पदार्थोक आश्रयहेतृक नीले एन, पीलेपन और ललाईरूपसे परक्त स्वभावकाले स्फटिक मणिको भौति यद्यगि जीवमें मोह, राग और द्वेष परको हेतु करके उन हुए हैं तो भी उनसे उपरक्त आस्मस्वभाव वाला होनेसे स्वयं अवेला ही बन्धरूप है, क्योंकि जीबक व रागादिभाव उसके द्वितीय है। ५. अकेला जीव ही बन्ध है इसे स्पष्ट करते हुए प्रवचनसार गाथा १८ की सूरिकृत टोकामे लिखा है यथात्र समदेवारले ससि लोध्रादिभिः कवायितत्वात् मनिष्टरमादिभिरपश्लिएमेक र.रष्ट वासः तथारमापि सप्रदेशत्वे सति काले मोहरागतषः कपाधिसत्वात् कर्मरजोभिरूपश्लिष्ट एको बन्धो दृष्ध्यः , शवदस्य विषयत्वाग्निश्चयस्य । जैसे लोकम वस्त्र सप्रदेशी होने से लोध आदिसे कसला होता है और इसलिये वह मजीठादिके रंगसे मंश्लिष्ट होता हुआ अवेला ही रक्त देखा जाता है उसी प्रकार आत्मा भो सघदेशी होनेस यथाकाल मोह, राग, दूषसे कषयित (मलिन) होने के कारण फर्मर जसे दिलष्ट होता हुआ अकेला ही बन्ध है ऐसा जानना चाहिए, क्योंकि निश्चयता विषय शुद्ध ( अकेला ) द्रव्य है। ६. इसी प्रवचनसारके परिशिष्ट में निश्चयनयसे अकेला आत्मा ही बन्ध और मोधस्वरूप है इसका स्पष्टीकरण करते हुए लिखा है निश्चयनयेन केवलनध्यमानमुच्यमानबन्ध-मोशोचितस्निधरूक्षत्वगुणपरिणतपरमाणुबम्ध-मोक्षयोरद्वै तानुभूतिः । अकेले वध्यमान और मुच्यमान ऐसे इन्ध-मोक्षोचित स्निग्यस्य और रूक्षत्व गुण में परिणत परमाणुके समान निश्चयनवसे एक आत्मा वध और मोक्ष में मतका अनुसरण करने वाला है ।। ये कतिपय आगमप्रमाण है कि ये राग, द्वेष और मोहरूप जीवभाव यतः जीवके साथ बद्ध है, अत: अज्ञानभायसे परिणत यह यात्मा हो निश्चयसे उनवा बन्धक है। इस प्रकार जीव और रागादिभादौम भले प्रकार बाय-बन्धक सम्बन्ध सिद्ध हो जाता है। मात्माम रागादि भाव उत्पन्न हों और वे भावबन्ध भी कहलायें, साथ ही परका आश्रय कर
SR No.090218
Book TitleJaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Questions and Answers
File Size12 MB
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