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________________ शंका ९ और उसका समाधान इस प्रकार विचार करने पर प्रतीत होता है कि जिनागममें सर्वत्र भावचारित्र या निश्चयचारित्रकी ही प्रधानता है, क्योंकि वह मोक्षका साक्षात् हेतु है। उसके होने पर साथमें गुणस्थानपरिपाटीके अनुसार म्यवहारचारित्र होता ही है, उसका निषेध नहीं है । परन्तु ज्ञानीको सदा स्थलाएरमणकी दृष्टि अनी रहती है, इसलिये मोक्षमार्गमे उसको मुख्यता है। मोक्षमार्गका तात्पर्य हो यह है। इस प्रतिशका में प्रसंगवश इसी प्रकारकी सम्बन्धित और भो अनेक चर्चाएं आई है, परन्तु उन सबका समाधान उक्त कथनसे हो जाता है, अतः यहाँ और विस्तार नहीं किया गया है। तुतीय दौर शंका मूल प्रश्न-सांसारिक जीव बद्ध है या मुक्त ? यदि बद्ध है तो किससे बंधा हुआ है ? और किसीसे बंधा हुआ होनेसे वह परतन्त्र है या नहीं ? यदि वह बद्ध है तो छूटनेका उपाय क्या है? प्रतिशंका ३ इस मूल प्रश्नके निम्न ४ खण्ड हो सकते हैं:(अ) संसारी जोत्र बर है या मुक्त ? (आ) यदि बद्ध है तो किमसे बंधा हुध है ? (इ) बंधा हुआ होनेसे वह परतन्त्र है या नहीं ? (ई) वदि वह बन है तो छूटने का उपाय क्या है ? (अ) संसारी बोष बद्ध है या मुक्त? इस प्रश्न के सम्बन्ध में आपने अपने प्रथम उत्तर में यह लिखा था कि 'शद्ध निश्च सनयकी अपेक्षा परम-गारिणामिक भावस्वरूप शुद्ध जीवके अन्यकर्म,भावकम और नोकर्मका अभाव होने से वह सकल दोषोंसे विमुक्त है।' इसके प्रमाण नियमसार गाथा ४५को टोकाका वाक्य दिया गया 1 इसका उपर्युक्त प्रश्नसे सम्बन्ध ही नहीं है, क्योंकि परम पारिणामिक भावस्वरूप शुद्ध जीव तीनों कर्मों व सकल दोषोंसे विमुक्त ( रहित ) है । इसमें न बहका कथन है और न मुक्त (बंधपूर्वक मुक्त) का कथन है। 'यदि मुक्तसे अबढ़का अभिप्राय लिया जाये तो मात्र बद्धका उत्तर हमा, किन्तु फिर भी बद्धके विषय में तो कोई उत्तर नहीं दिया गया। दूसरे उत्तर में भी इसके विषय में कुछ नहीं लिखा गया। आपके इस लिखनेसे यह जीव शुद्ध निश्चय नपको अपेक्षासे विमुखत ( अवद्ध) है' यह भी सिद्ध हो जाता है
SR No.090218
Book TitleJaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Questions and Answers
File Size12 MB
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