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________________ शंका ८ और उसका समाधान कारण परम्परा अनुसार तीर्थंकर जिनको दिव्यध्वनिके प्रवर्तन में प्रायोगिक निमित्त कहा जाय या विलसा निमित्त माना जाय । सर्वार्थसिद्धि अध्याय ५ सूत्र २४ में २ प्रकारके बन्धका निर्देश करते हुए लिखा है बन्धी द्विविधी ससिकः प्रायोगिकश्च। पुरुषप्रयोगानपेक्षा वासका। सद्यथा-स्निग्धसत्वगुणनिमित्तो विद्यबुल्काजलधाराग्नीन्द्रधनुरादिविषयः। पुरुषप्रयोगनिमित्तः प्रायोगिक: अजीवविषयो जीवाजीवविषयश्चेति द्विधा भिवः। तन्नाजीवविषयो जतुकाष्ठादिलक्षणः। जीवाजीवविषयः कर्मनोकर्मबन्धः। बन्धके दो भेद हैं-वनसिक और प्रायोगिक । जिसमें पुरुषका प्रयोग अपेक्षित नहीं है वह समिक बन्ध है। जैसे स्लिम्व और रूक्ष गणके निमित्तसे होनेवाला बिजली, उत्का, मेष, अग्नि और इन्द्रधनुष आदिका विषयभूत बन्ध पैनसिक बन्ध है । और जो बध पुरुषके प्रयोगके निमित्त होता है वह प्रायोगिक बन्ध है। इसके दो भेद है-अजी सम्बन्धो और जीवाजीयसम्बन्धी। लाख और लकड़ी आदिका अजीबसम्बन्धी प्रायोगिक बन्ध है। तथा कर्म और नोकर्मका जो जोबसे बध होता है वह जीवाजीवराम्बन्धी प्रायोगिक बन्ध है।' सर्भिसि के इस उतरणमे यद्यपि बन्धके दो भेदोका निर्देश किया गया है तथापि इन घरसे दो प्रकारके निमित्तोंका सम्यक ज्ञान होने में सहायता मिलती है। वे दो प्रकारके निमित्त है--विसमा निमित्त और प्रायोगिक निमित्त । जिन कार्योंके होने में पुरुषका योग और विकल्प इन दोनोवो निमित्तता स्वीकार की गई है वे प्रायोगिक कार्य कहलाते हैं। जैसे घटकी उत्पत्ति में कुम्भकारका विकल्प और योग दोनों निमित्त है । इसलिए कुम्भ प्रायोगिक कार्य कहा जामगा । तथा विकल्प और योग प्रायोगिक निमित्त कहलायेंगे। यह तो प्रायोगिक निमित्तोंका विचार है । इनसे भिन्न निमित्तोंको विवसा निमित्त कहेंगे । तत्त्वार्यावातिक अ. ५ सूत्र २४ में विससा शब्दके अर्थ पर प्रकाश डालते हुए लिखा है चिस्रला विधिविपर्यये निपातः ।। पौरुषेयपरिणामापेक्षो विधिः, तद्विपर्यये विस्रसाशब्दो निपातो रम्यः। यह विधिरूप अर्थास पिर्यय अर्शमें घिससा शब्द आया है जो निपातनात सिद्ध है। प्रकृति में पौरुषेय परिणामसापेक्ष विधि है, उससे विपरीत अर्थम विनसा शब्द जानना चाहिए। जो विमसा दान निपातनात् सिद्ध है। समयसार गाथा ४०६ की आचार्य जयसेन कृत टीकामे प्रायोगिक और वनसिक शब्दोंके अर्धका स्पष्टीकरण करते हुए लिन्ना है प्रायोगिका कर्मसंयोगजनितः वैनसिक स्वभावजः । कर्मके संयोमरी उत्पन्न हुआ गुण प्रायोगिक कहलाता है। तथा स्वभावमें उत्पन्न हुआ गुण सिक कहलाता है। समयसार माथा १०० पर दृष्टिपात करने पर जिम योग और विकल्पको उत्पादक हेतु या करी निमित्त कहा गया है उसीको प्रायोगिक रांशा है। और तद् इतर शब्दोंकी वस्रमिक संज्ञा है। इस दष्टिसे जब इस बातका विचार किया जाता है कि तीर्थकर जिन दिव्यध्वनिके प्रवर्तन में क्या प्रायोगिक निमित्त है तो विदित होता है कि उनके राग का सर्वथा अभाव होने के कारण उन्हें प्रायोगिक निमित्त कहना उपयुक्त न होगा। माना कि उनके कमंनिमित्तक योगका सदभाव पाया जाता है और उनके तीर्थकर प्रकृति तथा ६९
SR No.090218
Book TitleJaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Questions and Answers
File Size12 MB
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