SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 121
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शंका ६ और उसका समाधान ४९१ लेकर अन्त तक प्रति समय उसे अन्तरंग वहिरंग सामग्री भी वैशी मिलती जाती है और प्रयत्न भी उसीके अनुरूप होता रहता है । प्रत्येक कार्यके स्वकालका अपना स्थान है, उसमें फेर-फार होना सम्भव नहीं है । अपने विकल्पों को पुष्ट करने के लिए वचनोंका प्रयोग किसी भी प्रकारसे भले ही किया जाय, किन्तु वस्तुस्थिति यही है। यह समग्र जैनदनिका गाशय है। जैन संस्कृति उसके बाहर नहीं है। पं० प्रवर टोडरमलजी के कथनका भी मही आशय है और है यही आशय 'तादृशी जायते बुद्धि:' इसका भी । जब कि अपर पक्ष के कथनानुसार क्या वृद्धि, क्या व्यवसाय आदि सभी कार्य भवितव्यतानुसार होते तो जैनदर्शनिक हार्दको प्रकाशित करनेवाले उस वलोकते हो अगर पक्षका क्या बिगाड़ा है जिस कारण उसे अपर पक्षका कोपभाजन होना पड़ा है। व्यक्ति ओ संकल्प करता है यह उस ( संकलन ) की भवितव्यतानुसार करता है । वहाँ भी ता ही उसकी जननी है। ऐसा ती सूक्ष्मातिसूक्ष्म या स्थूलातिस्थुल ऐसा एक भी कार्य नहीं जो भवितयताको कर होता हो। भवितव्यलाका वया पुरुषार्थ, क्या अन्य कुछ सब पर आधिपत्य है । पृथक् पृथक विचार करने पर प्रत्येक कार्यको भवितव्यता भिन्न-भिन्न है । पर उन सबमें ऐसा सुमेल है जिससे नियत समय पर प्रत्येक कार्य होता रहता है, विरोधाभास उपस्थित नहीं होता । अपर पक्षने 'वादशी जायते बुद्धि का एक यह अर्थ दिया है - "जिस कार्य के अनुकूल वस्तु में उपादान शक्ति हुआ करती हूँ समझदार व्यक्ति उस वस्तुसे उसी कार्यको सम्पन्न करनेको बुद्धि ( भावना ) क्रिया करता है और वह पुरुषार्थ ( व्यवसाय ) भी तदनुकूल ही किया करता है, तथा वह वहां पर तदनुकूल ही अन्य सहायक साधनसामग्रीको जुटाता है। यहाँ पहले तो यह देखना है कि इस वस्तुमें इस कार्य के अनुकूल उपादान शक्ति है इसे वह समादार व्यक्ति जानता कैसे है, क्योंकि शक्ति तो परोक्ष है । कदाचित् काकतालीय न्याय से जैसा उसने विचार किया वैसी हो उत्तर कालमें उसमें द्वय पर्याय उपादान शक्ति हुई और भावनानुसार कार्य हो गया तो बात दुसरी है, अन्यथा उग वस्तु उग समझदार व्यक्तिको निमित्त कर जो-जो कार्य हुआ वह सब उस वस्तुएँ अवस्थित भवितानुसार ही कहा जायगा या नहीं ? यदि कहो कि भवितव्यतानुसार हो कहा जायेगा तो फिर 'ताशी जायते बुद्धि: इस श्लोक के तार्शसे विरोध नयाँ ? यदि कहो कि उस वस्तु में जो-जो कार्य वह उस वस्तु अवस्थित भवितव्यतानुसार नहीं कहा जायगा तो फिर यह कहना चाहिए कि उनसे भी गेहूँ उत्पन्न किया जा सकता है। अब रही सहायक सामग्रीको जुटाने की बात सो यहाँ भी यही विचार करना है कि यह सहायक सामग्री अपनी भवितव्यतानुसार ही परिणमती है कि उस रामझदार व्यक्ति प्रयत्नानुसार ? यह सामग्री अपनी भविष्यतानुसार परिणमे इसका तो नियम है, समझदार व्यक्तिको इच्छानुसार परिणमे इसका नियम नहीं है। मत: 'जुटाना' यह कहना भी कथनमात्र ही है । अतएव अपर पक्षने उम्र पचका जो उक्त अर्थ किया है वह तर्कसंगत नहीं है और न आगमसंगल ही है । हुआ उक्त में बुद्धि, व्यवसाय और सहायक सामग्रीका उल्लेख हुआ है। इसका भाशय इतना ही है. कि भवितव्यतानुसार कार्य होनेमें जहाँ ये सब होते हैं वहाँ से सब कार्य प्रति व्यवहारसे अनुकूल हो होते हैं । इस पद्य में समस्त बाह्य सामग्रीका संकलन कर दिया गया है। पर इसका अर्थ यह नहीं कि सभी कार्यों में व्यक्तिको बुद्धि और व्यवसाय व्यवहार हेतु हैं ही। जहाँ इनकी व्यवहारहेतुता है यहाँ भवितव्यतानुसार ही है वह उक्त कथनका तात्पर्य है । इस प्रकार समग्र कथनपर दृष्टिपात करनेसे यहो निश्चित होता है कि वियनायसे सभी कार्य अपने-अपने उपादानके अनुसार ही होते हैं। वहीं स्वयं कर्त्ता बनकर इन्हें अपने अभिन्न उत्पन्न करता है।
SR No.090218
Book TitleJaipur Khaniya Tattvacharcha Aur Uski Samksha Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year
Total Pages476
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Questions and Answers
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy