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शंका-समाधान शीक्षा करता, इसका उसकी ओरसे कोई कारण नहीं बतलाया गया है ।" यह उत्तरपक्षका पूर्वपक्षपर मिथ्या लांछन है, क्योंकि पूर्वपक्षने तच प० २४-२५ पर स्पष्ट लिखा है कि "आगे आपने आचार्य पूज्यपादके इष्टोपपदेशका 'नाज्ञो विज्ञत्वमायाति' इत्यादि श्लोक उपस्थित करके यह बतलानेका प्रयत्न किया है कि 'जो कुछ होता है वह केवल उपादानको अपनी योग्यताके बलपर ही होता है परन्तु हम बतला देना चाहते हैं कि इससे भी आप अपने मतकी पुष्टि करनेमें असमर्थ ही रहेंगे, कारण कि उक्त श्लोक एक तो द्रब्यकर्मके उदयके विषयमें नहीं है। दूसरे, वह हमें इतना ही बतलाता है कि जिसमें जिस कार्यके निष्पन्न होने की योग्यता विद्यमान नहीं है उसमें निमित्त अपने बलसे उस कार्यको उत्पन्न नहीं कर सकता है।" पूर्वपक्षके इस कयनकी आलोचना करते हुए उत्तरपक्षने उक्त कथन किया है। परन्तु उत्तरपक्षका यह कथन कि "अपरपक्ष इष्टोपदेशके "नाज्ञो विशवमायाति' इत्यादि श्लोकको द्रव्यकर्मके विषयमें स्वीकार नहीं करता" सत्त्वजिज्ञासुओंको भ्रममें डालने वाला है, क्योंकि पूर्वपशके सम्पूर्ण कथनपर दृष्टि डालनेसे यह स्पष्ट हो जाता है कि उत्तरपक्षका उक्त कथन पूर्वपक्षके मही अभिप्रायको प्रकट नहीं करता है। पूर्वपक्ष का कहना तो यह है कि “नाझो विज्ञत्वमायाति" इत्यादि श्लोक साक्षात् द्रव्यकर्मसे सम्बन्ध नहीं रखता है तथा परम्परया पूर्वपक्षने उस श्लोकका सम्बन्ध द्रव्यकर्म के विषय में स्वीकार किया ही है, जैसा कि उसके “दूसरे वह हमें इतना ही बतलाता है कि जिसमें जिस कार्यके निष्पन्न होनेकी योग्यता विद्यमान नहीं है उसमें निमित्त अपने बलसे उस कार्यको उत्पन्न नहीं कर सकता है" इस दूसरे विकल्पसे स्पष्ट है। अतः उत्तरपक्षको इस विषय को लेकर पूर्वपक्षाके ऊपर आक्षेप करनेक्री गुजाइश नहीं रह जाती है। कथन ६० और उसकी समीक्षा
(६०) पूर्वपक्षने त च० पृ० २५ पर अपने उपर्युक्त कथनके आगे यह कथन किया है-"और यह बात हम भी मानते है कि मिट्टी में जब पटरूपसे परिणत होनेको योग्यता नहीं पाई जाती है तो जुलाहा आदि निमित्तोंका सह्योग मिल जाने पर भी मिट्टीसे पटका निर्माण असम्भव ही रहेगा" इत्यादि ।
इसपर आक्षेप करते हुए उत्तरपक्षने अपने उपर्युक्त कयनमें आगे लिखा है कि "अगरपक्ष मिट्टी में पट बननेकी योग्यताको स्वीकार नहीं करता। किन्तु मिट्टी पुद्गल द्रव्य है । घट और पट दोनों पुद्गलकी व्यंजन पर्याय है। ऐसी अवस्थामें मिट्री में पटरूप बननेकी योग्यता नहीं है यह तो कहा नहीं जा सकता । परस्परमें एक दूसरे रूप परिणमनेकी योग्यताको ध्यानमें रखकर ही इनमें आचार्योंने इतरेतराभावका निर्देश किया है।" इसके आगे वहींपर उत्तरपक्षने यह लिखा है कि "फिर क्या कारण है कि मिट्टीसे जुलाहा पटपर्यायका निर्माण करनेमें सर्वत्र असमर्थ रहता है । यदि अपरपक्ष कहें कि वर्तमानमें मिट्टी में पटरूप बननेको योग्यता न होनेसे ही जुलाहा मिट्टीसे पट बनानेमें असमर्थ है तो इससे सिद्ध हुआ कि जो द्रव्य जब जिस पर्यायके परिणमनके सम्मुख होता है तभी अन्य सामग्री उसमें व्यवहारसे निमित्त होती है और इस दृष्टिसे विचार कर देखनेपर यही निर्णय होता है कि बाद्य सामग्री मात्र अन्यके कार्य करने में वैसे ही उदासीन है जैसे धर्मद्रव्य गतिमें उदासीन है।"
इसकी समीक्षा में यह कहना चाहता हूँ कि पूर्वपक्ष अपने वक्तव्य द्वारा मिट्टी में पट निर्माणकी योग्यताके अभावकी बात कर रहा है। परन्तु गुद्गलमें पट निर्माणकी योग्यताके अभावकी बात नहीं कर रहा है। उत्तरपक्षको पूर्वपक्षके ऊपर आक्षेप करनेसे पूर्व यह बात अवश्य सोचना चाहिए थी। मिट्टी पुद्गल द्रव्य अवश्य है, क्योंकि यह शुद्ध अर्थात अणुरूप नाना पुद्गल द्रव्योंका ही पिण्ड (स्कन्ध) है। परन्तु
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