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जयपुर (खानिया) तत्वचर्चा और उसकी समीक्षा
जो सत्यारथ रूप सो निश्चय कारण सो ववहारो। इसी प्रकार स्वामी समन्तभद्र ने भी लिखा हैबाह्य तपः परमदुश्चरमाचरंस्त्वमाध्यात्मिकस्य तपसः परिबृंहणार्थम् ॥८३॥
-स्वयंभूस्तोत्र अर्थ-हे भगवन् ! आपने आध्यात्मिक ( निश्चय ) तपकी वृक्षिके लिये बाह्य ( व्यवहार ) तपका कठोरताके साथ आचरण किया था।
नोट-~त्र्यबहारनय और निश्चयनय के स्वरूपको समझनेके लिये अन्य प्रश्नोंपर भी दृष्टि डालिये ।
मंगल भगवान् वीरो मंगलं गौतमो गणी । मंगलं कुन्दकुन्दार्यों जैनधर्मोऽस्तु मंगलम् ॥
शंका ४ व्यवहारधर्म निश्चयधर्ममें साधक है या नहीं ? प्रतिशंका ३ का समाधान
१. उपसंहार हमने अपने प्रथम उत्तरमें लिखा है कि निश्चय रत्नत्रय स्वभावभाव है, इसलिये निश्चयसे व्यवहार धर्म उसका साधक नहीं है । तथापि सहचर सम्बन्धके कारण व्यवहारधर्म निश्चयधर्मका साधक ( निमित्त ) कहा जाता है।
अपर पश्चने इसपर शंका करते हुए अपने दूसरे पत्रकमें कुछ आगम प्रमाण देकर व्यवहार धर्म निश्चयधर्मका साधक है यह सिद्ध किया है। साथ ही यह भी लिखा है कि व्यवहार धर्मको निश्चयधर्मका साधक मान लेनेपर भी निश्चयधर्म परनिरपेक्ष बना रह सकता है।
इसका उत्तर देते हुए हमने अपने दूसरे उत्तरमें लिखा कि व्यवहारधर्मको निश्चयधर्मका असद्भूत व्यवहार नमसे साधक बतलाया है । साथ हो व्यवहार मोक्षमार्ग निश्चय मोक्षमार्गका सहचर होनेसे अनुकूल है, इसलिए इसमें निश्चय मोक्षमार्गक साधकपनेका व्यवहार किया है यह भी बतलाया है।