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शंका ४ और उसका समाधान
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तो है नाहीं, परन्तु मोक्षमार्गका निमित्त है वा सहचारी है ताकी उपचार करि मोक्षमार्ग कहिए सो व्यवहार मोक्षमार्ग है । जातें निश्चय व्यवहारका सर्वत्र ऐसा ही लक्षण है। सांचा निरूपण सो निश्चय, उपचार निरूपण सो व्यवहार, तातें निरूपण अपेक्षा दोय प्रकार मोक्षमार्ग जानना । एक निश्चय मोक्षमार्ग है, एक व्यवहार मोक्षमार्ग है ऐसे दोय मोक्षमार्ग मानना मिथ्या है। बहुरि निश्चय व्यवहार दोकनिकूं उपादेय मानें है सो भी भ्रम है । जाते निश्चय व्यवहारका स्वरूप तो परस्पर विरोध लिए है । - माक्षमा प्रकाशक पृ० ३६५-३६६ देहली संस्करण तात्पर्य यह है कि निश्चय धर्म और व्यवहार धर्म दोनों ही आत्माके धर्म अर्थात् पर्यायांश हूँ । किन्तु निश्वयधर्म आत्माका स्वाश्रित पर्यायांश हूँ और व्यवहार धर्म आत्माका पराश्रित पर्यायांश है। प्राथमिक भूमिकामें ये दोनों मिश्ररूप होते हैं। ऐसी अवस्था में निश्चयधर्म की उत्पत्ति व्यवहार धर्मके द्वारा मानने पर मात्माको स्वभाव सन्मुख होनेका प्रसंग ही नहीं जा सकता । अतएव इस सम्बन्ध में जो पूर्व में स्पष्टीकरण किया है वैसा श्रद्धान और ज्ञान करना ही शास्त्रानुकूल
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श्री प्रवचनसार में इन दोनों में महान् भेद है इस तथ्यका बहुत सारगर्भित शब्दों द्वारा स्पष्टीकरण किया गया है। उसे अपनी सूक्ष्मेक्षणिकासे ध्यानमें लेनेपर व्यवहार धर्मको निश्चय धर्मका जो साधक कहा है वह कथन उपचरितमात्र है यह तथ्य अच्छी तरहसे स्पष्ट हो जाता है 1 वहाँ कहा है
संपद्यते हि दर्शनज्ञानप्रधानाच्चारित्राद्वीतरागान्मोक्षः । तत एव च सरागाद्देवासुरमनुजराजविभवक्लेशुरू बन्धः । अतो गुणेष्टफलाही रामचारित्रमुपादेयमनिष्टफलत्वात्सरागचारित्रं हेयम् ॥ ६ ॥
अर्थ-दर्शन ज्ञानप्रधान घारित्रसे, यदि वह ( चारिश ) वीतराग हो तो मोक्ष प्राप्त होता है, और उससे हो, यदि वह सराग हो तो देवेन्द्र-असुरेन्द्र-नरेन्द्र के वैभव क्लेशरूप बन्धकी प्राप्ति होती हैं। इस लिये मुमुक्षुको हृष्टवाला होनेसे वीतराग चारित्र ग्रहण करने योग्य ( उपादेय ) है, और अनिष्ट फलवाला होनेसे सराग चारित्र त्यागने योग्य ( देव ) है ॥ ६ ॥
हमारा प्रश्न था -
तृतीय दौर
: ३ :
शंका ४
व्यवहार धर्मं निश्चय धर्मका साधक है या नहीं ? प्रतिशंका ३
इस प्रश्न के उत्तर आपके पत्र में मूल प्रश्नको न छूते हुए स्वभाव और विभाव दर्शनोपयोगपर तथा पुद्गल को स्वभाव विभाव पर्यायपर प्रकाश डालकर नियमसारको तीन गाथाएं उद्धृत की गई थीं, परन्तु उन प्रमाणोंका मूल विषयसे कुछ सम्बन्ध नहीं है ।