SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनेन्द्र- शब्दानुशासन और उसके खिलपाट श्राचार्य पूज्यपाद अन्य ग्रन्थ श्री पं० नाथूरामनी प्रेमीने अपने लेखमें आचार्य पूज्यपादके निम्न प्रन्थोंका उल्लेख किया हैउपलब्ध ग्रन्थ - १. सर्वार्थसिद्धि २. समाधितन्त्र ३, इप्टोपदेश, ४. दशभक्ति | * अनुपलब्ध, परन्तु ज्ञात ग्रन्थ - १. शब्दावतार न्यास, २. जैनेन्द्र न्यास, ३. वैद्यक ग्रन्थ [नाम अज्ञात ], ४. सार-संग्रह, ५. जैनाभिषेक। वैद्य अन्धके सम्बन्ध में नये प्रमाण - १. आचार्य पूज्यपाद रचित वैद्यक अन्यका उल्लेख श्री प्रेमीजी के लेखके पृष्ठ १९ ० १ पर उद्भुत श्रवणचेल्गोलके ४० वै शिलालेखके चतुर्थ श्लोक के तृतीय चरण के 'स्वाभ्यं यदीयम्' पदों में भी मिलता है। २. जैन आचार्य उग्रादित्यविरचित कल्याणकारक नामक ग्रन्थमें भी पूज्यपादकेनैवक ग्रन्थका निर्देश हैं ऐसा ज्ञात हुआ है [स्वयं नहीं देखा ] | आचार्य पूज्यपादका नूतन परिज्ञात ग्रन्थ छन्दः शास्त्र - आचार्यने छन्दः शास्त्र पर भी कोई ग्रन्थ लिखा था, इसकी सूचना श्रवणबेलगोलके ४० वें शिलालेखके चौथे श्लोक के तृतीय चरणके 'छन्दः ' पदसे मिलती है। श्री प्रेमीजीले इसका संकेत रह गया प्रतीत होता है। जैनेन्द्र छन्दःशास्त्रका विस्तृत वर्णन हम अपने 'छन्दशास्त्रका इतिहास' में करेंगे। यह लिखा जा रहा है। इस प्रकार आचार्य पूज्यपादके व्याकरणातिरिक्त उपलध और अनुपलष प्रन्थोंकी संख्या १० हो जाती है । हमारे विचारानुसार आचार्य विरचित जैनेन्द्र व्याकरण सम्बन्धी निम्न ग्रन्थ थे— जैनेन्द्र सूत्रपाठ, जैनेन्द्रन्यास, धातुपाठसूल, धातुपारायचा, गणपाठ, उणादिसूत्र, लिङ्गानुशासन, लिङ्गानुशासन प्याच्या चार्तिकपाठ, परिभाषापाठ और शिक्षासूत्र ! सूत्रपाठ, धातुपाठ, गणपाठ के अतिरिक्त अन्य सभी ग्रन्थोंको ढूँढनेका प्रबल प्रयत्न होना चाहिए । | ग्रन्थ निश्चय ही किन्हीं जैन ग्रन्थागारों में छिपे पड़े होंगे। उनका उद्धार परम श्रावश्यक है। धातुपाठ और पाठके हस्तलेखको भी उपलब्ध करनेका प्रयत्न करना चाहिए। जिससे इनकी पाठशुद्धि में सहायता मिले । जैनेन्द्र के व्याख्याग्रन्थ जैनेन्द्र शब्दानुशासनपर अनेक ग्रन्थ लिखे गये। उनमें से जैनेन्द्रन्यास, भाष्य श्रभयनन्दोकी महावृत्ति, प्रभाचन्द्रका शब्दाभोजभास्कर न्यास, पञ्चवस्तु, लघुजैनेन्द्र और जैनेन्द्र प्रक्रिया नामक ग्रन्योका उल्लेख श्री पं० नाथूरामजी प्रेमीने अपने 'देवनन्दीका जैनेन्द्र व्याकरण' नामक लेखमें किया है। इनमेंसे न्यास और भाष्य ग्रन्थ इस समय अनुपलब्ध हैं । उपलब्ध ग्रन्थों मैं अभयनन्दीको वृत्ति ही सबसे प्राचीन है। 1 अभयनन्दीसे प्राचीन श्रनेक वृत्तियाँ - श्रभयनन्दीने महावृत्तिके आरम्भमें एक श्लोक लिखा हैयच्छुहइलक्ष णम सुत्र जपारमन्यैरव्यक्तमुकमभिधानविधौ दरिद्रः । तस्सर्वलोकहृदय प्रियचा स्वावचैर्व्य की करोत्य भयनन्दिमुनिः समस्तम् ॥ अर्थात् - कठिनता से पार पाने योग्य जिस शब्दलक्षणको दरिद्रोंने व्याख्या करने में स्पष्ट नहीं किया, उस सम्पूर्ण शब्दलक्षणको अभयनन्दी मुनि सबके हृदयोको प्रिय लगनेवाले सुन्दर वाक्योंसे स्पष्ट करता है । उक्त के पूर्वाष्ट है कि श्रभयनन्दीसे पूर्व इस जैनेन्द्र शब्दानुशासनपर ऐसी अनेक वृत्तियाँ बन चुकी थीं, जिनमें सूत्रोंकी पूर्ण स्पष्ट व्याख्या नहीं थी । ये व्याख्याएँ लघुवृत्ति के रूप में थीं, वह 'दरिद्वैः' पसे व्यक्त होता है । अभयनन्दीका काल—अभयनन्दीका काल विवादास्पद है। डाक्टर बेल्बेलकरने अपने 'सिस्टम आफ संस्कृत आमर में श्रभवनन्दीका काल सन् ७५० [वि०८०७] माना है [पैराप्राफ ३०] । श्रभयनन्दी की
SR No.090209
Book TitleJainendra Mahavrutti
Original Sutra AuthorAbhaynanda Acharya
AuthorShambhunath Tripathi
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, & Worship
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy